दिल्ली हाईकोर्ट: हर साधु को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर बनाने की इजाजत नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यदि हर साधु, बाबा, फकीर या गुरु को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर बनाने की अनुमति दी जाती है, तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। नागा साधुओं को दुनिया से अलग-थलग रहना होता है, उनके नाम पर संपत्ति का अधिकार मांगना उनकी मान्यताओं और प्रथाओं के अनुरूप नहीं है। इस टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने महंत श्री नागा बाबा भोला गिरि के उत्तराधिकारी अविनाश गिरि की मंदिर के नाम पर संपत्ति के सीमांकन की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी।

जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा, जैसा कि हम हिंदू धर्म में समझते हैं नागा साधुओं के जीवन के तरीके पर कोई शोध-पत्र लिखने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। नागा साधु भगवान शिव के भक्त हैं और उन्हें सांसारिक मामलों से पूरी तरह अलग रहना होता है। परिदृश्य के विभिन्न हिस्सों में हजारों साधु, बाबा, फकीर और गुरु हैं। यदि उनमें से प्रत्येक को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि स्थल बनाने की अनुमति दी जाती है, तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। याचिका में स्थानीय प्रशासन को याचिकाकर्ता के नाम पर घाट संख्या 33, त्रिवेणी घाट, निगमबोध घाट, जमुना बाजार में स्थित भूमि का सीमांकन करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। इसमें दलील दी गई थी कि यह भूमि वर्ष 1996 से उनके कब्जे में है।

अदालत को बताया गया कि 22 फरवरी 2023 को दिल्ली सरकार के बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने विभिन्न झुग्गियों और अन्य इमारतों को ध्वस्त कर दिया। संबंधित संपत्ति के आसपास के क्षेत्र में और अब नागा बाबा भोला गिरि के मंदिर को ध्वस्त किए जाने का खतरा है।
संबंधित संपत्ति यमुना के पुनरुद्धार

जैसे सार्वजनिक हित के लिए है
जस्टिस शर्मा ने मामले पर विचार किया और माना कि याचिकाकर्ता एक श्रेणी का अतिचारी है और संबंधित संपत्ति यमुना नदी के पुनरुद्धार जैसे बड़े सार्वजनिक हित के लिए है। उन्हाेंने कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 1996 में दिवंगत हुए पूज्य बाबा के मंदिर के अलावा टिन शेड और अन्य सुविधाओं वाले दो कमरे बनाए हैं। लेकिन फिर रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह साबित करे कि यह स्थान किसी ऐतिहासिक महत्व का है या पूजा के लिए या पूज्य दिवंगत बाबा को प्रार्थना करने के लिए जनता को समर्पित है। रिकॉर्ड के अनुसार क्षेत्र में सिर्फ 32 ऐतिहासिक घाट हैं। याचिकाकर्ता ने मंदिर जहां बना है उसे घाट संख्या 33 बताकर कहानी को एक नया मोड़ देने का प्रयास किया है। इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि यह मंदिर ऐतिहासिक महत्व का स्थान था और बड़े पैमाने पर जनता को समर्पित है।

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