नियमों का उल्लंघन और सरकारी एजेंसियों में भ्रष्टाचार के कारण हुए निर्माण कार्यो की वजह से अनेक दुर्घटनाएं हुई हैं। इन घटनाओं में कई निदरेष लोगों की जानें भी जा चुकी हैं। हर घटना के बाद दिखावे के तौर पर त्वरित कार्रवाई के आदेश तो दिए गए, लेकिन अधिकारियों और कर्मचारियों पर कभी भी प्रभावी और निर्णायक कार्रवाई नजर नहीं आई। ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए दोषियों के खिलाफ प्रतीकात्मक नहीं नजीर पेश करने वाली कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में दूसरा कोई अधिकारी या कर्मचारी इस तरह का काम करने की हिम्मत न जुटा सके और यह तब मुमकिन है जब चार्जशीट में सभी दोषियों के नाम शामिल हों और उनके खिलाफ विभागीय जांच भी हो।

अभी तक तो यही देखा गया है कि जितनी भी घटनाएं हुई हैं उनमें लापरवाही करने वाले अधिकारियों का नाम चार्जशीट से बाहर निकल दिया जाता है। जांच से बच निकले अधिकारी पदोन्नति लेकर आगे बढ़ते रहते हैं। इसी वजह से कमीशनखोरी को बढ़ावा मिलता है और मुरादनगर जैसे हादसे होते हैं।
काम के तरीके में बदलाव जरूरी
गुणवत्ता जांचने की प्राथमिक जिम्मेदारी अवर अभियंता की होती है, जिसको निर्माण कार्य के दौरान अपना 90 फीसद समय निर्माण स्थल पर देना आवश्यक होता है। गाजियाबाद, नोएडा में नामी कंपनियों के नाम से नकली सीमेंट भी बेचा जाता है। भ्रष्टाचार करने वाले ठेकेदार इन्हीं खराब गुणवत्ता वाली निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। अवर अभियंता और सहायक अभियंता द्वारा इस बात को नजरअंदाज कर दिया जाता है जो घोर अपराध है। कमीशनखोरी की बात करें तो ऐसा पहले नहीं था। ब्रिटिश राज में ठेकेदार को किसी कार्य को कराने के लिए दस फीसद लाभ दिया जाता है।
निर्माण कार्य का ब्योरा ही दस फीसद ज्यादा लागत का बनाया जाता था ताकि ठेकेदार ईमानदार रहे और निर्माण की तकनीक और सामग्री की लागत में लालच न करे। लेकिन अब उल्टा चलन हो गया है। ठेकेदारों के बीच कम दाम पर निर्माण कार्य करने की होड़ चल रही है। 30-40 फीसद कम लागत में निर्माण कार्य का ठेका ले लिया जाता है, लेकिन ठेका लेने के बाद निर्माण कार्य मानक के अनुसार नहीं किए जाते हैं। जब गुणवत्ता सुनिश्चित कर दी जाएगी तो कमीशनखोरी भी अपने आप खत्म हो जाएगी।
बिल्डिंग कोड का हो पालन
किसी भी बिल्डिंग को बनाने के लिए पहले से लागू बिल्डिंग कोड का पालन करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जिसका पालन ब्रिटिश राज में भी किया जाता था। यही वजह है कि अंग्रेजों के जमाने में बने पुल अब तक सही-सलामत हैं। अब बिल्डिंग कोड का पालन कई जगह निर्माण कार्यो में नहीं किया जाता है। ईंट से लेकर सीमेंट तक की गुणवत्ता कैसी है इसकी जांच होनी चाहिए। नींव की खोदाई से ही निगरानी की आवश्यकता है। छत का लेंटर डालने के दौरान उसमें बाल बराबर भी जगह नहीं छूटना चाहिए। इन सबको जांचने-परखने की जिम्मेदारी इंजीनियरिंग विभाग की होती है। किसी भी बिल्डिंग को बनाते समय यह भी ध्यान देना चाहिए कि निर्माण कार्य में मिश्रण का अनुपात सही हो।
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