सरकार संकट में फंसे टेलीकॉम क्षेत्र की हरसंभव मदद को तैयार है। कंपनियों की मदद कैसे की जा सकती है, इसकी संभावनाएं तलाशने का काम चल रहा है। इनमें कई वित्तीय रियायतों के साथ-साथ सरकार टैरिफ की नई व्यवस्था पर भी विचार कर रही है। सरकार चाहती है कि इस क्षेत्र में कंपनियों की संख्या और सीमित न हो ताकि मोनोपोली की स्थिति न आए। संचार मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक टेलीकॉम कंपनियों को मौजूदा एजीआर भुगतान से जुड़े संकट पर सरकार फिलहाल कोई कदम उठाने की स्थिति में नहीं है। एजीआर के भुगतान का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। लिहाजा इसमें किसी भी तरह की रियायत सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ही मिल सकती है।
यद्यपि मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि इस बात की संभावना तलाशी जा रही है कि क्या एजीआर के बकाया पर ब्याज और पेनाल्टी में किसी तरह की रियायत दी जा सकती है? इसके अतिरिक्त कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में गठित सचिवों की समिति भी टेलीकॉम कंपनियों को राहत देने के कई विकल्पों पर विचार कर रही है। इनमें यूएसओ शुल्क को पांच परसेंट से घटाकर तीन परसेंट करना, कंपनियों के लिए बैंक गारंटी की समीक्षा छमाही आधार पर करना और कंपनियों के लिए लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम चार्जेज को जीएसटी के इनपुट क्रेडिट के साथ समायोजित करने जैसे विकल्प शामिल हैं। समिति के समक्ष एक विकल्प जीएसटी की दर को 18 परसेंट से घटाकर 12 परसेंट करना भी है।
सूत्रों का कहना है कि सरकार के भीतर टेलीकॉम कंपनियों की मौजूदा टैरिफ व्यवस्था में बदलाव पर भी विमर्श चल रहा है। सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि क्या वॉयस और डाटा के लिए अलग टैरिफ प्लान की व्यवस्था की जा सकती है? सूत्रों का कहना है कि सरकार इस आशय का सुझाव ट्राई के समक्ष भी रख सकती है। ऐसा होने पर ग्राहकों को प्रत्येक वॉयस काल के लिए शुल्क देना होगा जो आज की तारीख में एकदम मुफ्त है। दूसरे, डाटा का अलग प्लान होने से इसके इस्तेमाल को भी नियंत्रित किया जा सकेगा।
टेक्नोलॉजी के विकास के लिए जरूरी है राहत : मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक सरकार संकट की इस स्थिति से सेक्टर को जल्द से जल्द बाहर लाना चाहती है। इसकी बड़ी वजह यह है कि कंपनियों को वित्तीय संकट से निकलने में जितनी देर होगी, 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में भी उतनी देरी होगी। सरकार नहीं चाहती कि टेक्नोलॉजी के अगले चरण में प्रवेश में देश और पीछे रह जाए। सरकार देश को डाटा एनालिटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में बड़ा हब बनाना चाहती है। लेकिन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इस छलांग के लिए मूल आवश्यकता 5जी की है। इसलिए सरकार नहीं चाहती कि टेलीकॉम कंपनियों की वजह से इसमें देश चीन या अन्य देशों से और पिछड़े।
प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) पर ब्याज और जुर्माने की अदायगी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। याचिका में कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह लाइसेंस फीस संबंधी अपने फैसले में एजीआर के बारे में जारी कुछ निर्देशों पर पुनर्विचार करे।कोर्ट ने 24 अक्टूबर के फैसले में सरकार के इस दृष्टिकोण को सही ठहराया था कि गैर-टेलीकॉम सेवाओं से संबंधित राजस्व को भी एजीआर का हिस्सा माना जाएगा।
एजीआर की इस परिभाषा के अनुसार कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों पर करीब 92,000 करोड़ रुपये की देनदारियों के दूरसंचार विभाग के आकलन को उचित ठहराया था। भारती एयरटेल ने अपनी याचिका में कोर्ट से एजीआर से संबंधित ब्याज और जुर्माने तथा ब्याज पर जुर्माने के बारे में स्थिति स्पष्ट करने को कहा है और इस विषय पर खुली अदालत में सुनवाई की अपील की है।
इससे पहले कोर्ट में दाखिल शपथपत्र में दूरसंचार विभाग ने कहा था कि एयरटेल पर लाइसेंस फीस के रूप में 21,682.13 करोड़ रुपये तथा वोडाफोन पर 19,823.71 करोड़ रुपये की रकम बाकी है। रिलायंस कम्यूनिकेशंस पर 16,456.47 करोड़ रुपये, बीएसएनएल पर 2098.72 करोड़ रुपये तथा एमटीएनएल पर 2,537.48 करोड़ रुपये की लाइसेंस फीस बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि टेलीकॉम कंपनियों पर बकाया ब्याज तथा जुर्माने की रकम का सही आकलन किया गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि अब इस में कोई भी मुकदमेबाजी नहीं होगी तथा कोर्ट इन देनदारियों के बारे में टेलीकॉम कंपनियों के लिए एक समय सीमा तय करेगा।