सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर जेलों में बंद कैदियों के हालात पर सख्त रुख अपनाया है शीर्ष अदालत ने गुरुवार को सभी राज्य सरकारों को जेल के नियमों में बदलाव करने का आदेश दिया है. सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि सभी राज्यों में कैदियों के अधिकारों का ध्यान रखा जाना चाहिए. साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि फांसी की सजा पाए कैदियों को मनोचिकित्सकों से मुलाकात करने दी जाए.
उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट जेल में बंद कैदियों की हालात पर नाराजगी व्यक्त कर चुका है, तब कोर्ट ने सवाल किया था कि अधिकारियों की नजरों में कैदियों को इंसान माना जाता है या नहीं? अदालत ने यह भी सवाल किया था कि क्या कैदियों के कोई अधिकार नहीं हैं? न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर ने जेल प्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि जेलों में एक समांतर प्रणाली चल रही है? क्या जेलों में विशेष अधिकार दिए गए हैं?
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जेलों की दुर्दशा पर चर्चा करते हुए नवंबर में हुई सुनवाई में अदालत ने कहा था कि जेलों में कैदियों की रहने के लिए सही व्यवस्था नहीं है. सालों से जेलों के भीतर रंगाई और पुताई का काम नहीं कराया गया है. यहां तक की जेलों में टॉयलेट और सीवेज भी साफ नहीं कराए जाते हैं. अदालत ने ये भी कहा था कि जेलों में बंद महिला कैदियों के बच्चों के रहने की उचित व्यवस्था नहीं है.