जिस प्रकार एक किसान अपनी फसल को तैयार करता है पिता भी अपनी संतान को योग्य बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए: आचार्य चाणक्य

आचार्य चाणक्य ने संतान के लालन-पालन और शिक्षा को अपनी चाणक्य नीति में विस्तार से बताया है. चाणक्य का ऐसा मानना था कि संतान को योग्य बनाने के लिए पिता को उसी तरह से श्रम करना चाहिए जिस प्रकार एक किसान अपनी फसल को तैयार करता है.

फसल और संतान की परवरिश में कोई अंतर नहीं है. जिस प्रकार से किसान फसल को तैयार करने के लिए कड़ी धूप में बंजर जमीन पर हल चलाता है. बीज डालता है. खाद-पानी लगाता है. पक्षी और जानवरों से फसल को बचाने के लिए रात-रातभर पहारा देता है. तब एक किसान की फसल तैयार होती है.

चाणक्य के अनुसार इस तरह से पिता को अपने अपनी संतान को योग्य बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए. उनमें संस्कार पैदा करना चाहिए. उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए उनका मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन करना चाहिए. समय समय पर बच्चों को गलत शोहबतों से बचाना चाहिए.

शिक्षा के साथ सदाचार का पाठ

बच्चों को शिक्षा के साथ साथ सदाचार का ज्ञान भी होना चाहिए. सदाचार से ही शिक्षा का सद्पयोग करना आता है. शिक्षा के साथ जब सदाचार का ज्ञान होता है तो प्रतिभा में निखार आता है.

अनुशासन के बिना सफलता संभव नहीं

जीवन में शिक्षा, संस्कार और सदाचार का जितना महत्व है उतना ही महत्व अनुशासन का होता है. जीवन में अनुशान नहीं है तो सफलता दूर ही रहती है. अनुशासन से ही व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है. किस भी सफलता के लिए आत्मविश्वास का होना बहुत जरुरी होता है.

आदर और विनम्रता

ये वो है गुण हैं जो व्यक्ति को महान बनाते हैं. संतान में ये दोनों ही गुण होना बहुत ही जरुरी है. बच्चों में इन गुणों को विकसित करने के लिए माता पिता को भी अनुशासित जीवन शैली अपनानी चाहिए. क्योंकि ये गुण संतान में माता पिता से ही आते हैं. इसलिए माता पिता को इसके लिए सचेत रहना चाहिए.

 

सत्य बोलने की आदत
संतान में सत्या बोलने की आदत डालनी चाहिए. ये एक ऐसा गुण है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारता है. यह गुण व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाता है. यह कठिन कार्य है लेकिन जो इस मार्ग को अपनाता है वह सादियों तक याद रखा जाता है.

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