गौतम बुद्ध के बताए गए कई नियम हैं जिन्हे अपना लिया जाए तो लाभ ही लाभ होता है. ऐसे में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गौतम बुद्ध की एक कथा जो आपको सुननी और पढ़नी चाहिए. आइए जानते हैं.
कथा – एक बार गौतम बुद्ध अनाथ पिंडक सेठ के घर पधारे. वह सेठ से बातचीत कर रहे थे, इतने में उनके घर से लड़ाई-झगड़े की तेज आवाजें सुनाई देने लगीं. बुद्ध के पूछने पर सेठ ने बताया कि वह अपनी बहू सुजाता की वजह से परेशान है. वह बड़ी घमंडी है, पति का अनादर करती है और हमारी बात भी नहीं मानती. इसी वजह से घर में हमेशा झगड़े का वातावरण रहता है. बुद्ध ने बहू को अपने पास बुलाया.
एक प्रश्र किया, ”बताओ सुजाता, तुम कैसी पत्नी हो-वधिकसमा, चोरसमा, प्रमादसमा, मातृसमा, भगिनीसमा, सखीसमा या दासीसमा. इनमें से तुम किस श्रेणी की गृहिणी में आती हो?सुजाता बोली, ”मैं आपकी बात समझ नहीं पाई. कृपया अपना आशय स्पष्ट करें.
बुद्ध बोले, ”जो गृहिणी हमेशा क्रोध करती है, पति से बदला लेना चाहती है, वह कसाई के समान है. यानी उसे ‘वधिकसमा कहा गया है. जो अपने पति की सम्पत्ति को अपने मौज, शौक में खर्च करती है वह ‘चोरसमा और जो पत्नी आलसी होती है वह ‘प्रमादसमा है. हमेशा अपने पति की चिंता करने वाली पत्नी ‘मातृसमा यानी मां के समान है. जो पत्नी बहन की तरह पति से स्नेह करती है और लज्जा भी करती है वह ‘भागिनीसमा है. जो मित्रभाव रखती है, वह ‘सखीसमा है.
जो गृहिणी पति के कष्ट सहकर हमेशा की तरह उसकी आज्ञा का पालन करती है, वह ‘दासीसमा है. सुजाता बताओ तो भला, तुम इनमें से कौन-सी पत्नी हो? बुद्ध की बात सुनते ही सुजाता की आंखें भर आईं. वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ी और बोली, ”भगवन! मुझे क्षमा करें. इनमें से मैं कौन हूं यह बताने में असमर्थ हूं, पर आपको विश्वास दिलाती हूं कि आज से मैं अपने पति और बड़ों का सदैव आदर करूंगी. उनका कभी भी मन नहीं दुखाऊंगी. आज से मैं अपने को घर की लक्ष्मी समझ कर उसकी देखभाल करूंगी. इस तरह गौतम बुद्ध ने उन्हें गलती का अहसास करवाया था.