गुरुवार से शुरु हुई बारिश शुक्रवार को भी जारी है। बादलों के बीच हल्की-मध्यम बारिश के साथ-साथ कई क्षेत्रों में ओले भी गिर रहे हैं। इन ओलों से तैयार खड़ी फसलों को भारी नुकसान हुआ है। गेहूं की फसलों को भी ओलों से भारी नुकसान हुआ है।

आम के पेड़ों में बौर या मंजरी लग चुकी हैं। इन ओलों से बौरों के टूटने के अलावा इनके चूर्णिल जैसे रोगों की चपेट में आने का खतरा भी बढ़ गया है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि आम की फसल को नुकसान से बचाने के लिए बौरों पर फफूंदनाशी रसायनों का छिड़काव करना चाहिए। इससे नुकसान की आशंका बहुत हद तक कम हो जाती है।
आम की बौर या मंजरी पेड़ों पर लग चुकी हैं। आम की कई किस्मों में अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार इनका आना अभी भी जारी है। इसी समय में बादल छाए रहने के बीच हल्की बारिश बौरों के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होती है। आर्द्रता बढ़ जाने के कारण फफूंद से जुड़े रोग लगने की आशंका बढ़ जाती है।
पूसा कृषि संस्थान के वैज्ञानिक अनिल कुमार दुबे के मुताबिक चूर्णिल एक फफूंद जनित रोग है। इसकी चपेट में आने के बाद मंजरियां पहले भूरी हो जाती हैं। बाद में ये काली पड़ जाती हैं। इनमें फल बिल्कुल नहीं लगते हैं। काली हो चुकी मंजरियों को तोड़कर पेड़ से दूर फेंक देना चाहिए।
बौरों को चूर्णिल (Powdery Mildew) जैसे फफूंद जनित रोगों से बचाने के लिए केराथेन रसायन को पांच मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर एक घोल बना लेना चाहिए। इसका आम की बौरों पर छिड़काव कर देना चाहिए। अगर चूर्णिल से जुड़े लक्षण मंजरियों पर दिखाई देते हैं या आर्द्रता आगे भी बनी रहती है तो दस से पंद्रह दिन के बाद इसका एक बार और छिड़काव कर देना चाहिए।
आम के पौधों को चूर्णिल रोग से बचाने के लिए सल्फर भी डाला जा सकता है। इसे दो ग्राम प्रति लीटर 0.2 फीसदी गंधक घुलनशील का घोल बनाकर पेड़ों पर छिड़काव करना चाहिए। केराथेन की तुलना में यह काफी सस्ती पड़ती है इसलिए किसान इसे ज्यादा पसंद करते हैं। यह कृषि से संबंधित बाजारों में आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
इस मामले में किसान भाइयों को सावधानी रखनी चाहिए कि उन्हें आम की फसल को फफूंद से बचाने के लिए किसी कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। आम के फल परागण के माध्यम से लगते हैं, इसलिए इस समय में आम के पेड़ों पर कीटनाशकों का छिड़काव करने से मित्र कीट भी नष्ट हो जाएंगे, जिससे परागण क्रिया अच्छी तरह संपन्न नहीं होगी। इससे आम की फसल उत्पादकता खराब हो सकती है।
जिस समय आम के पेड़ों में मंजरियां आती हैं, उस समय पेड़ों को सिंचाई करने से बचना चाहिए क्योंकि आर्द्रता बढ़ने से पेड़ों के फफूंद जनित रोगों की चपेट में आने की संभावना रहती है। सलाह दी जाती है कि जब तक आधी मंजरियों से आम के फल नहीं बन जाते हैं, तब तक खेतों को पानी के छिड़काव से बचना चाहिए।
आम की मंजरियों में गुच्छा रोग भी लगता है। इसमें आम की मंजरियों के बीच छोटे-छोटे पत्ते आ जाते हैं। बाद में ये मिलकर एक गुच्छा जैसा बना लेते हैं। इनसे आम के फल नहीं लगते हैं। इन्हें पेड़ों से काटकर अलग कर देना चाहिए क्योंकि ये पौधे के पोषक तत्वों का अनावश्यक इस्तेमाल करते हैं।
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