बीजिंग/वाशिंगटन, ताइवान को लेकर एक बार फिर अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ गया है। चीन ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि वह ताइवान सैन्य संबंध तोड़ दे। चीन ने जोर देकर कहा कि ताइवान की आजादी मतलब होगा अमेरिका के साथ जंग। चीन मंत्रालय के प्रवक्ता रेन गुओकियान्ग ने कहा कि अमेरिका हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करे। उन्होंने कहा कि चीन इस द्वीप देश को जोड़ने में भरोसा रखता है। वह ताइवान पर किसी बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करता है। चीन ने अमेरिका से कहा है कि वह ताइवान से सभी तरह के सैन्य रिश्ते खत्म करे। इसके पूर्व चीन ने जी-7 देशों की बैठक में भी ताइवान का मुद्दा उठा था। सवाल यह है कि क्या हांगकांग के बाद चीन सच में अमेरिका से दो-दो हाथ करने की तैयारी में है। आखिर क्या है उसकी रणनीति।
चीन की गहरी चाल मानते हैं विशेषज्ञ
- प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि चीन इस समय अपना पूरा ध्यान हांगकांग पर केंद्रीत कर रखा है। उसने अमेरिका और नाटो देशों के तमाम विरोध के बावजूद पिछले वर्ष हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू कर दिया। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष इस कानून का मकसद हांगकांग में लोकतंत्र के समर्थकों को सफाया करना है। चीन की रणनीति है कि पहले हांगकांग को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लो।
- चीन के इस कानून के बाद हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों की अवाज दबी है। उनका आंदोलन कमजोर हुआ है। चीन ने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के जरिए हांगकांग में लोकतंत्र का समर्थन करने वाले नेताओं एवं मीडिया समूह पर कार्रवाई करके यह संकेत दिया है कि वह हांगकांग की आजादी को लेकर किसी मुल्क के दबाव में आने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि चीन काफी हद तक अपनी रणनीति में सफल भी रहा है।
- उन्होंने कहा हांगकांग के बाद चीन का अगला निशाना निश्चित रूप से ताइवान ही होगा। वह ताइवान को छोड़ने वाला नहीं है। इसलिए वह ताइवान को लेकर लगातार अपनी हरकतों से दावेदारी पेश कर रहा है। उन्होंने कहा कि चीन ऐसी हरकतें एक रणनीति के तहत कर रहा है। ऐसा करके वह ताइवान को विवादों में बनाए रखना चाहता है। दूसरे, वह ताइवान को लेकर अमेरिकी और अन्य नाटों देशों की दिलचस्पी का भी अंदाजा लगाना चाह रहा है।
- प्रो.पंत ने कहा कि ताइवान में चीनी उकसावे का यह कतई अंदाजा नहीं लगाना चाहिए कि वह अमेरिका से जंग लड़ने की तैयारी कर रहा है। अलबत्ता वह ताइवान को अपना इलाका बताने का प्रोपोगेंडा कर रहा है। यह प्रोपोगेंडा एक रणनीति के तहत है। ऐसा दावा करके वह ताइवान की ओर दुनिया का ध्यान खींचे रहना चाहता है। इसमें भी वह कामयाब रहा है।
हांगकांग और ताइवान पर चीन की दावेदारी
पूर्वी एशिया का द्वीप ताइवान अपने आसपास के कई द्वीपों को मिलाकर चीनी गणराज्य का अंग है। इसकी राजधानी ताइपे है। चीन, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है । उधर, ताइवान खुद को स्वतंत्र मुल्क समझता है। ताइवान के अमेरिका समेत कई अन्य मुल्कों से आर्थिक और सामरिक करार भी है। चीन के विपरीत ताइवान में एक लोकतांत्रिक सरकार है। दोनों के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर भी काफी मतभेद है। अमेरिका और ताइवान के बीच सामरिक करार के चलते जब भी चीन ने उस पर दवाब बनाने की कोशिश की है, तब वाशिंगटन ने उसका साथ निभाया है। ताइवान को नाटो देशों का भी समर्थन हासिल है।
1949 से दोनों देशों में तनातनी
1949 से दोनों देशों में ये तनातनी चली आ रही। ताइवान का असल नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना है। इसकी सांस्कृतिक पहचान चीन से काफी अलग। वहीं चीन का नाम पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है। दोनों ही रिपब्लिक ऑफ चाइना और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना एक-दूसरे की संप्रभुता को मान्यता नहीं देते। ताइवान अपने को आज भी स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र मानता है। चीन की शुरुआत से यह राय रही है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए। वह इसे अपने में मिलाने के लिए बल प्रयोग को भी गलत नहीं ठहराता है।