कलयुगी बाप : एक नवजात बच्चे के शव को पिता ने अपनाने से मना किया

कलकत्ता में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने अस्पताल प्रशासन पर कई सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक नवजात बच्चे के शव का पोस्टमार्टम कराने का आदेश दिया है क्योंकि एसएसकेएम राजकीय अस्पताल में एक नवजात बच्चे का शव मिला है, जिसे उसका पिता अपनाने के लिए मना कर रहा है।

बाबू मंडल (बच्चे का पिता) का कहना है कि यह शव उसके बच्चे का नहीं है लेकिन अस्पताल का कहना है कि यह शव उसके बच्चे का है लेकिन वो इसे स्वीकार करने से इनकार कर रहा है। इसी बीच बाबू मंडल ने कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपने बच्चे को वापस लेने की मांग की है। कोर्ट ने कहा कि जब 13 अक्तूबर को दोबारा मामले पर सुनवाई होगी, तब राज्य की ओर से डीएनए और पोस्टमार्टम रिपोर्ट दोनों एक साथ दिखाई जाएंगी।

कोर्ट की एक डिवीजन बेंच में न्यायधीश संजीब बनर्जी और अरिजीत बनर्जी शामिल थे। बेंच ने निर्देश दिए कि बच्चे के शव का एक बार फिर पोस्टमार्टम किया जाएगा। ये पोस्टमार्टम एसएसकेएम राजकीय अस्पताल के बाल रोग विभाग की ओर से किया जाएगा। इसके अलावा कोर्ट ने आदेश दिया कि जब मामले पर दोबारा सुनवाई की जाएगी, तब रिपोर्ट्स का खुलासा किया जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि यह मामला खत्म हो सकता था अगर राज्य सरकार अस्पताल की ओर से की गई पूर्ण जांच में वांछित नहीं पायी जाती और दोष किसी कमजोर कर्मचारी पर लगाया गया। याचिकाकर्ता के वकील ब्रजेश झा ने दावा किया कि 13 जून को बच्चे को राज्य की ओर से संचालित आर जी कर अस्पताल में भर्ती किया गया था।

हालांकि बच्चे के पिता बाबू मंडल अस्पताल परिसर में ही थे लेकिन उन्हें अपने बच्चे को देखने नहीं दिया जा रहा था और यह आश्वासन दिया जा रहा था कि बच्चा एक दम ठीक है। याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि 23-25 जून तक, बच्चे की मां ने डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक अपने बच्चे को स्तनपान कराया था।

ब्रजेश झा ने कहा कि 25 जून की शाम को मंडल को सूचित किया गया कि उनके बच्चे की मृत्यु हो गई थी और 27 जून को अस्पताल के कर्मचारी उसे अस्पताल के मुर्दाघर ले गए और उसे एक विघटित शरीर दिखाते हुए कहा कि ये शव बाबू मंडल के बच्चे का है।

पिता ने बच्चे के शव को लेने से मना कर दिया और कहा कि ये शव उसके बच्चे का नहीं है, किसी और का है। जब अस्पताल के अधिकारियों ने उसकी ओर से दर्ज शिकायत पर कार्रवाई नहीं की, तो बाबू मंडल ने कोर्ट का रुख किया और वहां बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की।

 

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