प्रदेश के सहायता प्राप्त अशासकीय महाविद्यालयों ने उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय विधेयक- 2020 के प्रविधानों पर सवाल खड़े किए हैं। शुक्रवार को राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल मुख्य सचिव ओमप्रकाश, प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा आनंदबर्धन और सचिव न्यायिक सेवा प्रेम सिंह खिमाल से मिला और अपनी आपत्तियों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि विधयेक में शिक्षकों-कर्मचारियों के वेतन भुगतान और जन सामान्य को होने वाली कठिनाइयों को नजरअंदाज किया गया है।
महासंघ के संरक्षक व पूर्व अध्यक्ष डॉ. ओपी कुलश्रेष्ठ, कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. प्रशांत सिंह व विशेष सलाहकार डॉ. एचवीएस रंधावा ने मुख्य सचिव को बताया कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 में यह व्यवस्था की गई थी कि प्रत्येक कर्मचारियों की सेवा शर्तों, उनका वेतन और पेंशन आदि का भुगतान और अन्य हितों को उसी तरह संरक्षित किया जाएगा जैसा कि राज्य बनने से पूर्व प्राप्त हो रहा था। उन्होंने बताया कि यदि उत्तराखंड राज्य विवि विधयेक 2020 के तहत प्रदेश के 18 सहायता प्राप्त अशासकीय कॉलेजों को प्रदत्त सहायता अनुदान को बंद किया जाता है तो विषम परिस्थितियां पैदा हो जाएंगी, जिससे छात्र और आमजन प्रभावित होंगे।
वर्तमान में राज्य में पंजीकृत उच्च शिक्षा के छात्रों में से एक तिहाई छात्र इन अशासकीय कॉलेजों में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहां प्रति छात्र प्रति वर्ष करीब साढ़े नौ हजार रुपये खर्चा आता है जबकि राजकीय महाविद्यालय में एक छात्र पर प्रतिवर्ष 15 हजार रुपये व्यय आता है। बताया कि इन अशासकीय कॉलेजों की संबद्धता को लेकर जो असमंजस की स्थिति बनी हुई है उसपर भी सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। उधर, प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा आनंदबर्धन ने शैक्षिक महासंघ को भरोसा दिलाया है कि अनुदान की पुरानी व्यवस्था को बदला नहीं जाएगा। साथ ही शिक्षकों के हितों का पूरी तरह ध्यान रखा जाएगा।
वेतन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की
अनुदान बंद करने को लेकर अशासकीय महाविद्यालय शिक्षणोत्तर कर्मचारी परिषद उत्तराखंड ने गहरा रोष जताया। परिषद ने कहा कि अशासकीय कॉलेजों के कर्मचारियों के वेतन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, लेकिन सरकार ने विश्वविद्यालय अधिनियम में परिवर्तन कर पल्ला झाड़ दिया है। परिषद के महामंत्री गजेंद्र सिंह चौहान के नेतृत्व में सदस्यों ने शुक्रवार को इस संबंध में उच्च शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. धन सिंह रावत को ज्ञापन भेजा। इसमें कहा कि उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 में व्यवस्था थी कि अशासकीय कॉलेजों के कर्मचारियों के वेतन राज्य सरकार को अनुदान के रूप में आर्थिक मदद देनी होगी। यही व्यवस्था सालों से चली आ रही है। लेकिन, अब सरकार ने राज्य विवि अधिनियम 2020 में इस प्रावधान को हटा दिया है, जिससे अशासकीय कॉलेजों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। कहा कि अशासकीय कॉलेजों के कमजोर होने पर छात्रों को निजी कॉलेजों में महंगी फीस देनी पड़ेगी।