इसे दिल्ली में तीन साल से अधिक समय से सत्तासीन आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कहें, हठधर्मिता या कुछ और.. इसने तो योग का भी राजनीतिकरण कर दिया। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर एक तरफ जहां देशभर में योग किया जा रहा था, वहीं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल या आप सरकार के किसी मंत्री की बात तो दूर, कोई विधायक तक योग से जुड़े कार्यक्रम में शरीक नहीं हुआ।
हालांकि, उपराज्यपाल अनिल बैजल ने राजपथ पर योग अवश्य किया। यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पूरी दुनिया में योग मनाने का आह्वान किया था, लेकिन योग को बढ़ावा देने का उनका निर्णय किसी राजनीतिक फायदे से जुड़ा न होकर लोगों को स्वस्थ्य रखने की भावना से प्रेरित था। प्राचीन समय में योग भारत में ही शुरू हुआ, जिसे आज स्वास्थ्य लाभ के लिए कमोबेश हर देश में अपनाया जा रहा है।
बृहस्पतिवार को देश के अमूमन सभी राज्यों में योग दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित हुए। कहने को ऐसे कार्यक्रम दिल्ली में भी हुए, लेकिन केंद्र सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं के स्तर पर। दिल्ली सरकार ने लगातार तीसरे साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से परहेज ही किया।
स्कूलों, उच्च शिक्षण संस्थानों, सरकारी कार्यालयों, कहीं के लिए कोई निर्देश या सकरुलर जारी नहीं किया गया। निजी स्तर पर तो सरकारी कर्मचारी और अधिकारी विभिन्न योग कार्यक्रमों में सम्मिलित हुए, लेकिन सरकारी स्तर पर कुछ नहीं हुआ।
यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री केजरीवाल जिस प्राकृतिक चिकित्सा के लिए बेंगलुरु रवाना हुए हैं, योग भी उसी का एक अनिवार्य हिस्सा है। आप के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, दिल्ली सरकार योग कार्यक्रमों से इसलिए दूरी बनाकर रखती है, क्योंकि वह यह नहीं चाहती कि योग को बढ़ावा देने का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी या भाजपा को जाए।
योग से दूरी चिंता की बात
इस बार भी अंतररराष्ट्रीय योग दिवस पर दिल्ली सरकार की योग से दूरी चिंताजनक है। मुख्यमंत्री ही नहीं, आम आदमी पार्टी सरकार का कोई मंत्री या विधायक भी योग से संबंधित किसी कार्यक्रम में शरीक नहीं हुआ। जबकि योग के कार्यक्रम कमोबेश हर कॉलोनी में आयोजित किए गए और इनमें जनता जोर शोर से शरीक हुई। लेकिन, आप के जन प्रतिनिधि इनसे दूर रहे।
दिल्ली सरकार की यह सोच न तो स्वस्थ लोकतंत्र की परिचायक है और न ही स्वस्थ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की। इसे किसी भी तौर पर सरकार का तर्कसंगत निर्णय नहीं कहा जा सकता है। जनता भी इसे सही करार नहीं दे रही है।
बेशक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने की पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, लेकिन सच यह भी है कि योग भारतीय संस्कृति का बहुत ही पुराना एवं अभिन्न अंग है। पहले ऋषि मुनियों ने योग साधना की और बाद में जन सामान्य ने इसका अनुपालन किया। योग को वैकल्पिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से भी जोड़कर देखा जाता है। बहुत से असाध्य रोग योग से दुरुस्त होते देखे गए हैं।
योग का प्रभाव ही है कि आज विश्व भर में इसे स्वीकार किया जा रहा है। विदेशी भी बहुत मनोयोग से योग करते देखे जा सकते हैं। कहने का अभिप्राय यही है कि अगर कोई अच्छी व्यवस्था या शुरुआत हो तो उसका महज विरोध के लिए विरोध नहीं किया जाना चाहिए। स्वस्थ राजनीति तो यह होनी चाहिए कि अच्छी शुरुआत को अच्छे भाव से ही स्वीकार किया जाए।
विचारणीय पहलू यह भी है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल यूं तो प्राकृतिक चिकित्सा पसंद करते हैं। समय-समय पर इसके लिए बेंगलुरु भी जाते रहते हैं, बावजूद इसके योग का समर्थन न करना कहीं न कहीं उनका दोहरा मानदंड है। आम आदमी पार्टी सरकार को योग के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। साथ ही सरकार को भविष्य में दिल्ली के शिक्षण संस्थानों में ऐसे आयोजनों को बढ़ावा देना चाहिए।