हर साल मनाई जाने वाली फुलैरा/फुलेरा दूज इस साल 4 मार्च को है। आप सभी को बता दें कि फुलैरा/फुलेरा दूज फाल्गुन द्वितीया (Phalguna Dooj) को मनाया जाता है और यह पर्व होली के आगमन का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में ब्रजभूमि के कृष्ण मंदिरों में इस त्योहार का बहुत अधिक महत्व हैं। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं फुलैरा/फुलेरा दूज की कथा।
फुलैरा/फुलेरा दूज की पौराणिक कथा- व्यस्तता के कारण भगवान श्री कृष्ण कई दिनों से राधा जी से मिलने वृंदावन नहीं आ रहे थे। राधा के दुखी होने पर गोपियां भी श्री कृष्ण से रूठ गई थीं। राधा के उदास होने के कारण मथुरा के वन सूखने लगे और पुष्प मुरझा गए। वनों की स्थिति के बारे में जब श्री कृष्ण को पता चला तो वह राधा से मिलने वृंदावन पहुंचे।
श्रीकृष्ण के आने से राधा रानी खुश हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। कृष्ण ने खिल रहे पुष्प को तोड़ लिया और राधा को छेड़ने के लिए उन पर फेंक दिया। राधा ने भी ऐसा ही श्री कृष्ण के साथ किया। यह देखकर वहां पर मौजूद गोपियों और ग्वालों ने भी एक-दूसरे पर फूल बरसाने शुरू कर दिए। कहते हैं कि तभी से हर साल मथुरा वृंदावन में फूलों की होली खेली जाने लगी।