भोलेनाथ यानी भगवान शंकर के जिस मंदिर में भी आप अब तक गए होंगे आपने देखा होगा की वहां उनके वाहन नंदी की मूर्ति अवश्य होती है. जी हाँ, जी दरअसल नंदी बैल भगवान शिव की सवारीर ही नहीं उनके सबसे बड़े भक्त और पुत्र समान हैं और अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि वो शिव की सवारी कैसे बने.
कथा – शिलाद ऋषि ब्रम्हचारी व्रत का पालन कर रहे थे जिससे उनके मन में यह भय था की उनका वंश आगे नहीं बढ़ेगा. अपने इसी भय की वजह से वह एक बालक को गोद लेना चाहते थे किन्तु वह एक ऐसे बालक को गोद लेना चाहते थे जिसको भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हो. इसी वजह से उन्होंने भगवान शिव की आराधना करना प्रारंभ किया. शिलाद ऋषि की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और शिलाद ऋषि को दर्शन दिएतथा उनसे वरदान मांगने को कहा. तब शिलाद ऋषि ने उनसे वरदान में अपनी पुत्र की कामना को उनसे कहा. भगवान् शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और अंतर्ध्यान हो गए. कुछ समय के पश्चात शिलाद ऋषि को खेत में एक शिशु मिला जिसके चेहरे पर बहुत तेज था. जैसे ही ऋषि ने उस शिशु को उठाया उसी समय भविष्यवाणी हुई की यह आपका ही पुत्र है इसका पालन पोषण आप ही करो.
उसी बालक का नाम ऋषि ने नंदी रखा. उस बालक को साथ लाने के कुछ समय पश्चात शिलाद ऋषि को इस बात का ज्ञान हुआ की उनका बालक अल्पायु है इस बात की जानकारी जैसे ही नंदी को हुई वह हँसने लगे और अपने पिता से कहा की आपने भगवान् शिव के वरदान से मुझे पाया है तो मेरे प्राणों की रक्षा भी भगवान् शिव ही करेंगे. इतना कहकर नंदी भगवान शिव की तपस्या करने चले गए नंदी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शंकर नंदी के समक्ष प्रगट हुए और नंदी से वर मांगने को कहा. भगवान शिव को अपने समक्ष देखकर नंदी अपनी अल्पायु के विषय में भूल गए और उन्होंने भगवान शिव से वरदान में भगवान शिव के साथ रहने की इच्छा प्रगट की जिससे खुश होकर शिव ने उन्हें एक बैल का चेहरा प्रदान कर अपना वाहन. मित्र, भक्त और अपने गणों में प्रथम स्थान प्रदान किया.