राममंदिर निर्माण के साथ-साथ शेष 65 एकड़ के परिसर की भव्यता को लेकर भी कार्ययोजना बनाए जाने का काम तेज हो गया है। इसी क्रम में रामजन्मभूमि परिसर में पहले से प्रस्तावित रामकथा कुंज के परियोजना को लेकर भी ट्रस्ट गंभीर है। रामकथा कुंज के जरिए श्रीराम जन्मभूमि परिसर को रामकथा के प्रसंगों से सजाने की योजना है। इसके लिए रामकथा पर आधारित 125 प्रसंग बनाए जा रहे हैं जिनमें से अब तक 40 प्रसंग तैयार हो चुके हैं।
अब इस कार्य में भी तेजी लाने का निर्णय लिया गया है। जनवरी से कारीगरों की संख्या बढ़ाकर प्रसंगों का निर्माण तेज किया जाएगा। रामकथा प्रसंगों को मूर्तियों में आकार देने का काम पिछले 2013 से ही जारी है। इस बीच राममंदिर का निर्माण भी शुरू हो गया है। ऐसे में मूर्ति निर्माण के कार्य को भी तेज करने का निर्णय लिया गया है।
योजना के अनुुसार पुत्रेष्टि यज्ञ व रामजन्म से लेकर, मां सीता के धरती में समाहित होने तथा श्रीराम की जलसमाधि से स्वधामगमन तक के पूरे सौ प्रसंग तैयार किए जा रहे हैं। जिसमें पुत्रेष्टि यज्ञ, रामजन्म, सीता जन्म, ताड़का-सुबाधु वध सहित अब तक 40 प्रसंग बनकर तैयार हैं। इन मूर्तियों को इस तरह बनाया जा रहा है कि इन्हें देखने के बाद रामायण युग जीवंत होता प्रतीत होगा। प्रत्येक प्रसंग को जीवंत बनाने के लिए कारीगर अपनी संपूर्ण कला का प्रयोग कर रहे हैं। मुख्य कारीगर रंजीत मंडल ने बताया कि यदि रामकथा कुंज की परिकल्पना को साकार करना है तो कारीगरों की संख्या बढ़ानी होगी।
कुछ दिन पूर्व ही ट्रस्ट के महासचिव ने कार्यशाला का निरीक्षण कर प्रसंग निर्माण का कार्य देखा था उन्होंने मूर्तियों को भव्यता पूर्वक बनाने का निर्देश दिया है। बताया कि उम्मीद है कि जनवरी से कारीगरों की संख्या बढ़ाकर प्रसंगों को मूर्त रूप देने का काम तेज कर दिया गया है।
रामकथा पर आधारित 125 प्रसंगों की जो मूर्तियां बनाई जा रही हैं उनकी आयु कम से कम 100 वर्ष तक होगी। मुख्य कारीगर रंजीत मंडल ने बताया कि इन मूर्तियों को बनाने में सरिया, गिट्टी व सीमेंट का प्रयोग किया जा रहा है। दो-एक के अनुपात में मसाले का प्रयोग हो रहा है। सभी प्रसंग जब तैयार हो जाएंगे तो इनमें रंग भरने का काम भी किया जाएगा। इन सभी मूर्तियों को श्रीराम जन्मभूमि परिसर में स्थापित किया जाएगा। शीशे के शोकेस में एक-एक प्रसंग लगाए जाएंगे। हर प्रसंगों के अनुसार मानस की चौपाइयां व दोहे भी वर्णित किए जाएंगे।