जमीर सिद्दीकी] कानपुर । शरई अदालत में अब महिला मुफ्ती आलिम भी दिखाई देंगी। हालांकि अभी यह लागू होना आसान नहीं होगा लेकिन जिस तेजी से छात्राओं के लिए मदरसों की संख्या बढ़ रही है, उससे ये तय है कि महिलाएं सक्रिय हो चुकी हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की राष्ट्रीय अध्यक्ष शाइस्ता अंबर इस मामले को उठाती रही हैं कि शरई अदालत में एक महिला मुफ्ती या आलिम का होना जरूरी है। शाइस्ता का तर्क है कि कोई पीडि़त महिला अपनी फरियाद लेकर शरई अदालत जाती है और कोई ऐसी बात बताना चाहती है, जो पुरुष आलिम या मुफ्ती के सामने नहीं कह सकती तो अपनी बात कैसे कहेगी। उधर, गद्दियाना में मदरसा अशरफुल मदारिस ने अपना गल्र्स सेक्शन अलग कर दिया है और युवतियों के लिए हास्टल भी बन रहा है।
गल्र्स मदरसे में दूर दराज की युवतियों के रहने की व्यवस्था की जा रही है। आलिम का कोर्स उन्हें पूरा कराने का काम शुरू हो गया है लेकिन ये शरई अदालत में होंगी, ये मजबूती से नहीं कह सकते। ऐसे ही प्रदेश में कई ऐसे मदरसे हैं जिन्होंने महिलाओं की ओर ध्यान देकर उन्हें मुफ्ती और आलिम बनाने का काम शुरू कर दिया है।
इमाम नहीं बन सकेंगी : मदरसों में आलिम या मुफ्ती या कारी की डिग्री लेने वाली युवतियां महिलाओं के मीलाद, जलसे व इज्तेमा में दीनी बातें सिखा सकेंगी। किसी गल्र्स मदरसे में उत्साद हो सकेंगी लेकिन वह किसी मस्जिद की इमाम नहीं बन सकेंगी।