अक्सर देखा जाता है कि माएं बच्चों से ज्यादा लाड़ जताकर और तोतली जुबान में बात करती हैं, जबकि पिता साफ लहजे और शब्दों में वार्तालाप करते हैं। पिता और बच्चों के बीच वार्तालाप पर किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि बच्चों से तोतली जुबान में बात करने से परहेज करने वाले पिता अपने बच्चों के लिए बाहरी परिवेश और माहौल में सामंजस्य बैठाने में सहायक होते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जो पिता अपने बच्चों से वयस्कों की तरह साफ शब्दों और लहजे में बात करते हैं, वे बच्चों को बाहरी दुनिया में घुलने-मिलने एवं दूसरों की बातों को समझकर वार्तालाप करने में उनके लिए मददगार साबित होते हैं। वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के स्पीच एवं हियरिंग साइंस डिपार्टमेंट के प्रोफेसर मार्क वैनडैम ने कहा, “यह बुरी बात नहीं है। यह पिताओं की कमजोरी नहीं है।”
वैनडैन ने कहा कि माएं जब अपने बच्चों से बात करती हैं, तो ज्यादा ही लाड़ में तोतली जबान में बोलती हैं, जबकि पिता बच्चों से वैसे ही साफ और सीधे लहजे में बात करते हैं, जैसे वे दूसरे वयस्कों से करते हैं। शोधकर्ताओं की टीम ने दो से तीन साल की आयु वाले बच्चों और उनके अभिभावकों को रिकॉर्डिग उपकरण देकर दिनचर्या की सामान्य बातें रिकॉर्ड करने के लिए कहा, ताकि अभिभावकों और बच्चों के बीच के वार्तालाप का अध्ययन कर सकें।
वैनडैन का मानना है कि बच्चे का लिंग और उम्र भी पिता के साथ वार्तालाप के तौर-तरीके को प्रभावित कर सकता है। यह अध्ययन पिट्सबर्ग में आयोजित होने वाली एकॉस्टिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका की 169वीं बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा।