नौनिहालों के भविष्य को लेकर अभिभावक और शिक्षक दोनों ही बेहद चिंतित हो उठे। चिंता स्वाभाविक भी थी। ऐसे में आधुनिक टेक्नोलॉजी और शिक्षकों का जज्बा काम आया खासकर दुर्गम वनांचलों में।
रायपुर। कोरोना आपदाकाल में तमाम चुनौतियां उत्पन्न हुईं, जिनमें स्कूली शिक्षा के समक्ष उत्पन्न चुनौती भी कम नहीं थी। नौनिहालों के भविष्य को लेकर अभिभावक और शिक्षक दोनों ही बेहद चिंतित हो उठे। चिंता स्वाभाविक भी थी। ऐसे में आधुनिक टेक्नोलॉजी और शिक्षकों का जज्बा काम आया, खासकर दूरस्थ दुर्गम वनांचलों में। पढ़ें छत्तीसगढ़ के वनांचलों से इसी जज्बे को सामने लाती यह कहानी।
छत्तीसगढ़ की अपनी विशेषताएं और विषमताएं हैं। दुर्गम वनांचल, आदिवासी समाज, अलग बोली, पिछड़ापन जैसे घटक तो हैं ही, ऊपर से नक्सलवाद का खात्मा भी जोर-शोर से चल रहा है। ऐसे में तब जब कोरोना आपदा ने सभी व्यवस्थाओं को अस्त-व्यस्त कर दिया हो, वनांचलों और सुदूर गांवों में शालेय (स्कूली) शिक्षा किस प्रकार बाधित हुई होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। किंतु ऐसी कठिनतम परिस्थितियों में छत्तीसगढ़ के कुछ शिक्षक नौनिहालों के सारथी बन कर सामने आए और शिक्षा की अलख जगाए रखी। यह ऐसे ही शिक्षकों की कहानी है।
ग्रामीण बच्चों के सुगम पठन-पाठन के लिए इनमें से कुछ ने जहां नवाचार से नई इबारत लिखी, वहीं कुछ ने खुद गांवों-मुहल्लों में पहुंचकर सूझबूझ के साथ बच्चों को पढ़ाने का काम किया। यही नहीं, चंदा करके सैकड़ों ग्रामीण स्कूलों में एलईडी स्क्रीन भी लगाईं और इनके माध्यम से भी कक्षाएं सुचारु रखीं। राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख डॉ. आलोक शुक्ला ने ऐसे कर्मठ शिक्षकों के अलग-अलग योगदान को संकलित कर ‘महामारी, लेकिन पढ़ना-लिखना जारी” शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी है। हमने भी ऐसे शिक्षकों के योगदान को चिह्नित किया।
एक शिक्षक की पहल से पढ़ रहे 10 हजार बच्चे
(राजकुमार यादव)
राजनांदगांव जिले के सोमाटोला गांव की प्राथमिकशाला के शिक्षक राजकुमार यादव की सोच और पहल से आज ब्लॉक के सभी 279 स्कूलों में एलईडी टीवी लग गई है। कोरोना काल में जब पढ़ाई की राह में रोड़ा खड़ा हो गया है, विशेषकर उन गरीब-ग्रामीण बच्चों के लिए स्थिति और कठिन थी, जिनके पास मोबाइल और इंटरनेट नहीं था। ऐसे में इन एलईडी के जरिए 10 हजार से अधिक बच्चे सुगम तरीके से पढ़ाई कर पाए और निरंतर कर रहे हैं। इस पर होने वाला खर्च स्कूलों के शिक्षक, स्थानीय जनप्रतिनिधि, पंचायतें और समाजसेवी उठा रहे हैं। राजकुमार ने भी इसके लिए अपनी तीन लाख रुपये की एफडी तुड़वा दी। पढ़ाई के दौरान स्कूलों में कोरोना के नियमों का शत-प्रतिशत पालन कराया जाता है। क्षेत्र के समाजसेवी संजय जैन भी इस मुहिम में साथ दे रहे हैं। बच्चों को नि:शुल्क ऑनलाइन शिक्षा मुहैया हो रही है।
मोहल्ला कक्षाओं के जरिए चल रही है बच्चों की पढ़ाई
मोहल्ला कक्षाओं, ऑनलाइन कक्षाओं से लेकर कहानी, लोककथा, कठपुतली, कमीशीबाई और स्थानीय बोलियों में भी पढ़ाई कराकर इन शिक्षकों ने अभिभावकों को भी अपना ऋणी बना लिया है। शासकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय, असोरा, सरगुजा की व्याख्याता दीपलता देशमुख कठिनतम दौर में, अप्रैल की भीषण गर्मी के बीच प्रतिदिन अपनी स्कूटी से असोरा पहुंचतीं रहीं। स्कूल तो बंद थे, पर उन्होंने 192 अभिभावकों से संपर्क किया और अपने विचार बताए। तब से आज तक वे मोहल्ला कक्षाओं के जरिए 142 बच्चों को नियमित रूप से पढ़ा रही हैं। यह भी ध्यान रखती हैं कि बच्चे शारीरिक दूरी, मास्क, सैनिटाइजर इत्यादि का अनुशासन का पालन करें। क्षेत्र में अब इनकी पहचान स्कूटर वाली बहनजी के रूप में बन गई है। हर कोई इनका सम्मान करता है।
मोहल्ले-मोहल्ले पहुंचकर बच्चों को पढ़ाते हैं ये शिक्षक
रायपुर के मठपुरैना के सरकारी स्कूल की शिक्षिका कविता आचार्य रिक्शे पर सवार होकर मोहल्ले-मोहल्ले पहुंचकर पढ़ाती हैं। बच्चों को उनका बेसब्री से इंतजार रहता है। जशपुर के शासकीय प्राथमिकशाला, पैकू के शिक्षक वीरेंद्र भगत भी इस दौरान सक्रिय रहे। प्रतिदिन बाइक से निकलते और एक-एक कर आसपास के गांवों गाढ़ा पैकू, पैकू, डाड़ टोली, तेतरटोली आदि में पहुंचकर बच्चों को पढ़ाते। यह क्रम अब भी बना हुआ है।
नृत्य-संगीत के जरिये मोहल्ला पाठशाला में होती है पढ़ाई
(ऊषा कोरी)
बिलासपुर की शिक्षिका ऊषा कोरी और शिक्षक सत्येंद्र श्रीवास ने कोरोना काल में शिक्षा देना जारी रखा है। यही नहीं, कठपुतली के प्रयोग से आसान तरीके से ग्रामीण बच्चों को पढ़ा रहे हैं। सर्वप्रथम पाठ का चुनाव कर छत्तीसगढ़ी में उसका अनुवाद कर लेते हैं। फिर संगीत और नृत्य का संयोजन करके बेहतरीन तरीके से कठपुतली के जरिए मोहल्ला पाठशाला में पढ़ा रहे हैं। बच्चे बड़े उत्साह के साथ इस कक्षा में शामिल होते हैं।
पढ़ाई के लिए अपनाती हैं अनूठा तरीका
(वसुंधरा कुर्रे)
कोरबा के पाली विकासखंड की शासकीय प्राथमिकशाला, सरई सिंगारपाली की शिक्षिका वसुंधरा कुर्रे बच्चों को अपनी स्क्रैप बुक के माध्यम से कहानी सुनाती मिलेंगी। वे कार्डबोर्ड का उपयोग कर चल रे मटके टम्मक टू… कविता का छत्तीसगढ़ी वर्जन चल रे तुमा बाटे बाट… को गाते हुए कहानी के रूप में चित्र दिखाते हुए पढ़ाती हैं। बच्चे पढ़ाई के इस तरीके का खूब आनंद लेते हैं।
(शालिनी शर्मा)
कन्या प्राथमिकशाला, नैला, जांजगीर-चांपा की शिक्षिका शालिनी शर्मा कोरोना काल में कमीशीबाई जापानी पद्धति पर आधारित शिक्षण सामग्री से पढ़ा रही हैं। बच्चों को रोचक तरीके से पढ़ाने के लिए कमीशीबाई थिएटर से विभिन्न कहानियों को चित्रों में बदलकर पीछे से एक के बाद एक स्लाइड को आगे बढ़ाते हुए और आवाज देकर पढ़ाया जाता है।
शिक्षक न होते हुए भी निभाई शिक्षक की भूमिका
(दादा जोकाल)
कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने शिक्षक न होते हुए भी शिक्षक की भूमिका निभाई। दंतेवाड़ा जिले में आदिवासी बच्चों के लिए काम करने वाले दादा जोकाल क्षेत्र में पहचाना हुआ नाम हैं। कोरोना काल में इनकी मदद से भी आदिवासी बच्चों को उनकी ही भाषा में पढ़ाया जा रहा है। दरअसल, दादा जोकाल सात आदिवासी बोलियों के ज्ञाता हैं। इस आधार पर उन्होंने बच्चों के लिए उनकी ही बोली में वर्णमाला, डिक्शनरी और पठन सामग्री तैयार की है। इससे बच्चे सुगमता से पढ़ाई कर पा रहे हैं।
(भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़)
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि कोरोना संकट में जब स्कूल बंद थे, हमारे शिक्षकों ने बहुत ही नए प्रयोग किए हैं। मैं उन्हें बधाई देता हूं। साथ ही उम्मीद करता हूं कि अन्य शिक्षक भी इससे प्रेरित होंगे। जागरण-फेसबुक का संयुक्त अभियान राइजिंग इंडिया वर्तमान हालात में देश-समाज को नई दिशा दे रहा है, इसके लिए बहुत धन्यवाद।
छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा कि कोरोना काल में इन सभी कर्मठ शिक्षकों की भूमिका सराहनीय रही है। शिक्षक राजकुमार का प्रयास भी प्रशंसनीय है। कोरोना को हराने के लिए शिक्षकों को इसी प्रकार अपना दायित्व निभाना होगा, यह नौनिहालों के भविष्य का प्रश्न है। राइजिंग इंडिया अभियान के तहत दैनिक जागरण-नईदुनिया और फेसबुक की इस पहल का मैं पुनः स्वागत करता हूं।
(डॉ. आलोक शुक्ला, प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा, छत्तीसगढ़)
छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा के प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला ने कहा कि किसी काम को बेहतर बनाने का यह सबसे सरल तरीका है, जो इन शिक्षकों ने कर दिखाया है। दैनिक जागरण और नईदुनिया राइजिंग इंडिया अभियान में इन शिक्षकों की कहानी पूरे देश के सामने रख रहे हैं, जो इनके लिए बहुत बड़ा प्रोत्साहन होगा।