भारतीय जनसंघ के संस्थापक और इसके पहले अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 66वीं पुण्यतिथि पर देश आज उनको नमन कर रहा है। लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उनकी प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) हॉस्पिटल में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 66वीं पुण्य तिथि पर उनकी प्रतिमा को पुष्प अर्पित किया। उनके साथ स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह, कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक, कैबिनेट मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह तथा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह के साथ स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी थे।
इसके बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने सिविल हॉस्पिटल का निरीक्षण किया। इस दौरान ओपीडी भी चल रही थी। उन्होंने इलाज कराने आए लोगों से बात करने के साथ ही वेंटिलेटर सुविधा सेवा का भी उद्घाटन किया। सिविल हॉस्पिटल को सोमवार को ही 12 वेंटिलेटर मिले हैं। इनमें सात पीआईसीयू, एक नियोनेटल, दो इमरजेंसी वार्ड और दो कार्डियक वॉर्ड में लगे हैं। इसके बाद वह अपने सरकार आवास रवाना हो गए।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। भारतीय जनता पार्टी इस दिन को ‘बलिदान दिवस’ के रूप में मनाती है। भारतीय जनता पार्टी इस दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाती है। उनकी पुण्य तिथि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी डॉ. मुखर्जी को याद करते हुए ट्वीट किया है, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक देशभक्त और स्वाभिमानी राष्ट्रवादी थे और उन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। एक मजबूत और एकजुट भारत के लिए उनका जुनून हमें प्रेरित करता है और हमें 130 करोड़ भारतीयों की सेवा करने की ताकत देता है।
33 साल की उम्र में बने कुलपति
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म छह जुलाई 1901 को कोलकाता के एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी था, जो बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में जाने जाते थे। कोलकाता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी 1926 में सीनेट के सदस्य बने। वर्ष 1927 में उन्होंने वकालत की परीक्षा पास की। इसके बाद 33 वर्ष की उम्र में कलकत्ता यूनिवॢसटी के कुलपति बने थे। यहां पर चार साल के कार्यकाल के बाद कांग्रेस की ओर से कोलकाता विधानसभा पहुंचे। कांग्रेस से मतभेद होने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दिया और उसके बाद फिर से स्वतंत्र रूप से विधानसभा पहुंचे।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपनी अंतरिम सरकार में मंत्री बनाया था। वह बहुत छोटी अवधि के लिए मंत्री रहे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कई मतभेद थे। यह मतभेद तब और बढ़ गए जब नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच समझौता हुआ। इसके समझौते के बाद छह अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दिया था।