ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर रैंतोली में बीते शनिवार को हुए हादसे में 14 लोगों की मौत हो गई। दुर्घटनाग्रस्त टेंपो-ट्रैवलर 20 सीट में पास था, लेकिन इसमें दो चालक सहित 26 लोग सवार थे। गुरुग्राम से रुद्रप्रयाग तक यह वाहन बेधड़क आ गया, लेकिन तीर्थयात्री नहीं होने के कारण किसी भी बैरियर पर इसकी चेकिंग नहीं हुई।
सभी लोगों ने एजेंसी के माध्यम से टेंपो-ट्रैवलर की बुकिंग की थी, जिसमें अधिकांश पहली बार उत्तराखंड आए थे। जिला आपदा विभाग और परिवहन विभाग उस एजेंसी को नोटिस भेजने की तैयारी कर रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि क्षमता से अधिक सवारियां भी हादसे का कारण रही हैं।
शुक्रवार की रात 10 बजे अलग-अलग शहरों के 23 युवक-युवतियां गुरुग्राम से चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला ट्रैकिंग के लिए टेंपो-ट्रैवलर से रवाना हुए थे। गुरुग्राम से आगे जितने भी बैरियर आए, कहीं पर भी वाहन की चेकिंग नहीं की गई।
ब्रह्मपुरी में वाहन को रोका गया, पर सिर्फ इसलिए कि कहीं वाहन चारधाम यात्रा में तो नहीं जा रहा है। बैरियर पर चेेकिंग दल ने यह तो देखा कि यात्री चारधाम यात्रा जा रहे हैं या नहीं, लेकिन यह नहीं देखा कि 20 सीटर वाहन में 26 लोग बैठे हैं। उत्तराखंड में प्रवेश करने पर वाहन की हरिद्वार, ऋषिकेश में भी क्षमता से अधिक सवारी को लेकर कोई चेकिंग नहीं की गई।
जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदन सिंह रजवार ने बताया कि सहायक परिवहन संभागीय अधिकारी के माध्यम से पता चला कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन 20 सीट में पास था। साथ ही उसके चालक के पास पहाड़ में वाहन चलाने का ज्यादा अनुभव भी नहीं था। उन्होंने बताया कि ट्रैवलर एजेंसी के संचालक को नोटिस भेजा जाएगा।
डीडीएमओ ने बताया कि अलग-अलग जगह से 23 युवक-युवतियों ने एजेंट के जरिए टेंपों-ट्रैवलर की बुकिंग की थी। प्रत्यक्ष रूप से इन लोगों में कम ही एक-दूसरे को जानते थे और ज्यादातर को यह भी मालूम नहीं था कि वह उत्तराखंड घूमने जा रहे हैं। घायलों से जो बातचीत हुई है, उसमें भी ज्यादातर कर कहना था कि उन्हें मालूम नहीं कि वह कहां जा रहे थे, बस घूमने के लिए जा रहे थे।
गंभीर घायलों को छह एंबुलेंस में जिला चिकित्सालय से गुलाबराय मैदान में लाया गया। जहां से उन्हें हेलिकॉप्टर से एयरलिफ्ट किया गया। स्वास्थ्य विभाग की एंबुलेंस तो त्वरित गति से एक के बाद एक घायलों को लेकर पहुंची, लेकिन इसके पंखे खराब थे। ऐसे में मैदान में जब तक हेलिकॉप्टर आता, तब तक घायलों को गर्मी से बचाने के लिए वहां मौजूद युवाओं ने गत्ते फाड़कर उनसे हवा की।