आज है कार्तिक पूर्णिमा, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

आज है कार्तिक पूर्णिमा, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

आज कार्तिक पूर्णिमा है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। इस पूर्णिमा का शैव और वैष्णव, दोनों ही सम्प्रदायों में बराबर महत्व है। इस दिन शिव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था और विष्णु जी ने मत्स्य अवतार भी लिया था। इसी दिन गुरुनानक देव का जन्म भी हुआ था। इसे प्रकाश और गुरु पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि यदि इस दिन श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाते हैं (स्नान करते हैं), तो उनके कई जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। इस दिन जरूरतमंदों को दान करने से लोगों पर समस्त देवी-देवताओं का आशीर्वाद बना रहता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीहरि ने मत्स्यावतार के रूप में प्रकट हुए थे। भगवान विष्णु के इस अवतार की तिथि होने की वजह से आज किए गए दान, जप का पुण्य दस यज्ञों से प्राप्त होने वाले पुण्य के बराबर माना जाता है।

पूजा का शुभ मुहूर्त-

पूर्णिमा तिथि शुरू– 29 नवंबर, रविवार को दोपहर 12 बजकर 48 मिनट से

पूर्णिमा तिथि समाप्‍त– 30 नवंबर, सोमवार को दोपहर 03 बजे तक।

कार्तिक पूर्णिमा संध्या पूजा का मुहूर्त– 30 नवंबर, सोमवार – शाम 5 बजकर 13 मिनट से शाम 5 बजकर 37 मिनट तक।

कार्तिक पूर्णिमा पूजा की विधि-

कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदियों और कुण्डों आदि में स्नान करना चाहिए। अगर संभव ना हो तो घर पर नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। फिर भगवान लक्ष्मी नारायण की आराधना करें और उनके समक्ष घी या सरसों के तेल का दीपक जलाकर विधिपूर्वक पूजा करें।

ऐसा माना जाता है कि यदि इस दिन विशेष विधि से पूजा-अर्चना की जाए तो समस्त देवी-देवताओं को आसानी से प्रसन्न किया जाता है। इस दिन पूरी विधि और मन से भगवान की आराधना करने से घर में धन और वैभव बना रहता है। साथ ही मनुष्य को सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति मिलती है। इस पवित्र दिन विधि विधान से पूजा-अर्चना करने पर जन्मपत्री के सभी ग्रहदोष दूर हो जाते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। दरअसल इसके पीछे यह मान्यता है कि त्रिपुरासुर नामक एक राक्षस ने प्रयाग में एक लाख साल तक घोर तप किया जिससे ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसे दीर्घायु का वरदान दिया। इससे त्रिपुरासुर में अहंकार आ गया और वह स्वर्ग के कामकाज में बाधा डालने लगा व देवताओं को आए दिन तंग करने लगा। इस पर सभी देवी देवताओं ने शिव जी से प्रार्थना की कि उन्हें त्रिपुरासुर से मुक्ति दिलाएं। इस पर भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर नामक राक्षस को मार डाला था। तभी से कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा कहा जाने लगा। इसे गंगा दशहरा भी कहा जाता है।

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