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विश्व को डरा रहा ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा, भारत को सताएंगी गर्म हवाएं

ग्लोबल वार्मिंग के गंभीर परिणामों की चिंता पूरे विश्व को सता रही है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगर्वमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपने नए आकलन में कहा है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए समाज के सभी पहलुओं में दूरगामी और अभूतपूर्व परिवर्तन की आवश्यकता है। बता दें कि आईपीसीसी ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि ग्रीन हाउस गैसों के मौजूदा उत्सर्जन स्तर को देखते हुए 2030 तक दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री तक बढ़ जाएगा। अगर दुनिया में 2 डिग्री से ज्यादा तापमान बढ़ गया तो यह गंभीर संकट पैदा कर सकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में भी इसके भयानक परिणाम होंगे। पेरिस समझौते की होगी समीक्षा आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुमानों पर, इस साल दिसंबर में पोलैंड में केटोवाइस जलवायु परिवर्तन पर होने वाली बैठक में इसपर चर्चा होगी। इस बैठक में दुनिया भर के देश जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए पेरिस समझौते की समीक्षा करेंगे। सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों में से एक होने के कारण भारत इस वैश्विक बैठक में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। ट्रंप और किम के बीच दूसरी शिखर बैठक पर सहमति यह भी पढ़ें इन सब ने मिलकर तैयार की ग्लोबल वॉर्मिंग पर रिपोर्ट आईपीसीसी प्रमुख होसुंग ली ने कहा, '6000 से अधिक वैज्ञानिक संदर्भों का उल्लेख और दुनिया भर के हजारों विशेषज्ञ व सरकारी समीक्षकों के योगदान से यह महत्वपूर्ण रिपोर्ट तैयार की गई है।' बता दें कि 2015 में पेरिस समझौते को अपनाया गया तब, संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के निमंत्रण के जवाब में 40 देशों के 91 लेखकों और समीक्षा संपादकों ने आईपीसीसी रिपोर्ट तैयार की । बढ़ सकता है तापमान 400 पन्नों की इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2030 के बाद वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'अगर तापमान इसी गति से बढ़ता रहा तो ग्लोबल वार्मिंग 2030 से 2052 के बीच 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकती है।' इजरायली पीएम की पत्नी ने रेस्‍तरां से मंगाया एक लाख डॉलर का खाना, धोखाधड़ी का मुकदमा यह भी पढ़ें ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने के लिए.... रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिए 2016 से लेकर 2035 तक करीब 2.4 लाख करोड़ डॉलर्स के निवेश की जरूरत होगी। यह वैश्विक जीडीपी का 2.5 फीसद है। हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पर्यावरण की कीमत से बहुत कम है। उनका कहना है कि इतना तापमान महासागर का स्तर बढ़ाने और खतरनाक तूफान, बाढ़ और सूखा जैसी स्थिति लाने के लिए काफी अहम है। तालिबान ने उड़ाया पुल, तीन प्रांतों से काबुल का सड़क संपर्क टूटा यह भी पढ़ें भारत को भी खतरा इस रिपोर्ट में भारत के कोलकाता शहर और पाकिस्तान के कराची शहर का भी जिक्र किया गया है। चेतावनी जारी की गई है कि यहां गर्म हवाओं का सबसे अधिक खतरा होगा। रिपोर्ट में लिखा है, 'कराची और कोलकाता को साल 2015 जैसे गर्म थपेड़ों का सामना करना पड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन की वजह तापमान में लगातार इजाफा हो रहा है।' साथ ही, गर्म हवाओं के कारण होने वाली मौतें भी बढ़ रही हैं। बता दें कि 2015 की जानलेवा गर्म हवाओं में कम से कम 2500 लोगों की जान चली गई थी। बढ़ेगी गरीबी, फसलों को होगा नुकसान इस रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण गरीबी भी बढ़ेगी। इसमें लिखा है, 'ग्लोबल वॉर्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस की बजाय 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने से 2050 तक करोड़ों लोग जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों और गरीबी में जाने से बच जाएंगे।' यह सीमा मक्का, धान, गेहूं व अन्य दूसरी फसलों में कमी को भी रोक सकती है।

ग्लोबल वार्मिंग के गंभीर परिणामों की चिंता पूरे विश्व को सता रही है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगर्वमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपने नए आकलन में कहा है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस …

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