वरिष्ठ उपन्यासकार भगवानदास मोरवाल कहते हैं, ‘दिल्ली के बारे में सोचने पर मेरी स्मृतियों में आज से लगभग चालीस साल पुराने असंख्य रेखाचित्र उभर आते हैं। एकदम अल्हड़ खुली सड़कें, दिल्ली परिवहन निगम की बसें, बिजली के खंभों पर हर …
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