श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म को जीव की योनि निर्धारण का महत्वपूर्ण कारण बताया है। यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत। तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते रजसि प्रलयं गत्वां कर्मसंगिषु जायते। तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते (अध्याय 14 श्लोक 14-15) …
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