कजाकस्तान में 8 जून से शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट की शुरुआत हो रही है. एससीओ समिट इस बार काफी अहम होने जा रही है. इस समिट में भारत को एससीओ की सदस्यता मिल जाएगी. अभी तक भारत पर्यवेक्षक के तौर पर एससीओ से जुड़ा हुआ था. ऐसा पहली बार होगा जब किसी पर्यवेक्षक देश को एससीओ की पूर्ण सदस्यता दी जाएगी. हालांकि, भारत के साथ पाकिस्तान को भी एससीओ में शामिल किया जाएगा.
एससीओ में भारत को सदस्यता मिलना एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है. संगठन के दोनों बड़े देश चीन और रूस ने भी भारत का स्वागत किया है. अब सवाल ये है कि इस संगठन में शामिल होने से भारत को क्या फायदे होंगे या भारत के लिए इस एससीओ की सदस्यता मिलने के क्या मायने हैं.
आतंकवाद पर चोट
आतंकवाद से भारत की लड़ाई में SCO एक मजबूत प्लेटफॉर्म साबित होगा. क्योंकि इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मध्य एशिया में सुरक्षा चिंताओं के मद्देनज़र सहयोग बढ़ाना है. आतंकवाद से लड़ने के लिए एससीओ का अपना मकेनिज्म है. साथ ही मार्च में आतंकवाद और चरमपंथ से लड़ने के लिए सभी सदस्य देशों ने प्रस्ताव पास किया था, जिससे एससीओ के एंटी टेरर चार्टर को मजबूती मिली. ऐसे में भारत एससीओ के मंच पर पाकिस्तान की आतंकी नीतियों को एक्सपोज कर सकता है.
सेंट्रल एशिया में बढ़ेगा दखल
एससीओ की सदस्यता के साथ ही भारत का सेंट्रल एशियाई देशों में दखल बढ़ जायेगा. ये देश संसाधनों के लिहाज से काफी मजबूत हैं, जो भारत के लिये फायदेमंद साबित हो सकते हैं. साथ ही वहां के बाजारों में भारत की एंट्री आसान हो जायेगी.
OBOR पर चीन बना सकता है प्रेशर
तमाम फायदों के बीच शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता मिलने पर भारत को कुछ नुकसान भी उठाने पड़ सकते हैं. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के मसले पर चीन और पाकिस्तान एक साथ मिलकर भारत का विरोध कर सकते हैं. साथ ही चीन ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना को पूरा करने के लिये भारत पर डिप्लोमैटिक प्रेशर बना सकता है.
रूस से और मजबूत होंगे रिश्ते
यूं तो रूस और भारत के रिश्ते पिछले 70 सालों से बेहतर चले आ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी रूस दुनिया को दरकिनार कर भारत के साथ खड़ा नजर आता रहा है. ऐसे में एससीओ की सदस्यता मिलने पर संगठन के मुख्य सदस्य रूस के साथ भारत की दोस्ती और गहरी हो जाएगी. भारत रूस के साथ मिलकर आतंकवाद और सीपीईसी जैसे मुद्दों पर चीन और पाकिस्तान को घेर सकता है.
2015 में मिली थी मंजूरी
भारत को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य का दर्जा मिलने का ऐलान 2015 में रूस के उफ़ा में हुआ था. उफा में हुए सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ भी मौजूद थे. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए भारत और पाकिस्तान की सदस्यता मंज़ूर करने की घोषणा की थी. भारत ने सितंबर 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन किया था.
2001 में हुई थी SCO की शुरूआत
अप्रैल 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रूस, कज़ाकस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान आपस में एक-दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निबटने के लिए सहयोग करने पर राजी हुए थे. इसे शंघाई फाइव कहा गया था.
जून 2001 में चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देशों कजाकस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन शुरू किया और नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निबटने और व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया. शंघाई फाइव के साथ उज़बेकिस्तान के आने के बाद इस समूह को शंघाई सहयोग संगठन कहा गया.