आरसेप पर भारत सरकार द्वारा लिए गए फैसले की उद्योग जगत और किसान संगठनों ने जमकर तारीफ की है। दुग्ध उत्पाद कंपनी अमूल ने सरकार के इस निर्णय को मील का पत्थर बताया है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत ने आरसेप पर हस्ताक्षर नहीं करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि इससे संबंधित भारत की चिंताओं का संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर भारत ने इससे दूर रहने का फैसला किया है।
कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआइआइ) ने भी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। सीआइआइ के प्रेसिडेंट विक्रम किलरेस्कर ने कहा कि संगठन भारत सरकार के हर उस समझौते के साथ खड़ा है, जिसमें द्विपक्षीय हितों को ध्यान में रखा गया है।
फिक्की के प्रेसिडेंट संदीप सोमानी ने भी आरसेप पर सरकार के पक्ष का समर्थन किया है। सोमानी ने कहा कि वे आरसेप के मुद्दे पर सरकार द्वारा लिए गए फैसले के साथ खड़े हैं। उन्होंने कहा कि इस डील में भारत की चिंताओं को ध्यान में नहीं रखा गया था, इसके अलावा बहुत से मुद्दे अनसुलङो थे। आरसेप पर चल रही बातचीत के दौरान ही कई सेक्टरों ने अपनी चिंताएं दर्ज कराई थीं। इनमें स्टील, प्लास्टिक, कॉपर, एल्यूमीनियम, मशीन टूल्स, पेपर जैसे उद्योगों ने इस पर अपनी चिंताएं जताईं थीं।
डेयरी उद्योग ने भी इसको लेकर अपनी चिंताएं जताई थीं। इस उद्योग के साथ-साथ किसान संगठनों का कहना था कि 16 देशों के इस समझौते में देश के दुग्ध और डेयरी उद्योग को खतरा पैदा हो जाएगा। इस समझौते के बाद न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से बहुत अधिक मात्र में डेयरी उत्पाद भारतीय बाजार में आ सकते थे। इससे कीमतों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता, जिसका अंतिम असर पहले से संकट से गुजर रहे किसानों पर दिखता।