चाँद के दीदार के साथ ही रमजान का पावन महीना शुरू होने जा रहा है. मुस्लिम संप्रदाय के धर्मगुरुओं ने इस महीने में रोज़े रखने और अल्लाह की इबादत करने की तरजीह देते हुए कुरान शरीफ के चौथे स्तम्भ में इसका विस्तृत वर्णन भी किया गया है. रमज़ान में रखें जाने वाले रोज़े का अपना ही महत्त्व होता है. रोज़े का अर्थ होता है रुक जाना अर्थात रोज़े रखने वाला भोर से लेकर सूर्यास्त तक खाने-पीने आदि से रुक जाता है. अरबी में रोज़े को ‘सौम’ कहा जाता हैं.
रोज़े रखने का मुख्य उद्देश्य हमारे खून के साथ रगों में घूमने वाला मानसिकरुपी शैतान को काबू में रखना होता है.मन को विचलित करने वाले विचारों और इन्द्रियों को काबू में रखने के लिए रोज़े किये जाते है.इसलिए इस्लाम में रोज़े को इंद्रियों को वश में रखने का उत्तम साधन माना गया हैं.
रोज़दार को रोज़ा रखते हुए मन में कभी भी गलत भावनाओं को आने नहीं देना होता है.मन में गलत विचार, अश्लील बातें करने,शोर मचाने,गाली-गलौच करने और लड़ने की भावना को मन में लेन से ही रोज़े का फल नहीं मिलता है साथ ही अल्लाहताला ख़फ़ा हो जाते है और इससे रोज़दार को रोज़े का हक़ भी नहीं मिल पता है.