सुप्रीम कोर्ट के साथ ही त्रिपुरा, राजस्थान, केरल, सिक्किम, इलाहाबाद और कर्नाटक के हाईकोर्ट ने लीगल साइज के पेपर का उपयोग करने की पुरानी प्रथा को रोकने का फैसला किया है। अब वहां पर ए-4 पेज साइज के कागज का प्रयोग किया जाता है।
अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे नियमों को बदल कर लीगल पेपर के स्थान पर ए4 कागज के इस्तेमाल व दोनों ओर प्रिंटिंग की अनुमति को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।
चंडीगढ़ निवासी विवेक तिवारी ने एडवोकेट अभिषेक मल्होत्रा के माध्यम से याचिका दाखिल करते हुए हाईकोर्ट में ए-3 साइज की जगह ए-4 कागज का इस्तेमाल करने की मांग की है। याची ने कहा कि ए3 पेपर के इस्तेमाल से न केवल कागज की जमकर बर्बादी हो रही है, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। याचिका में हाईकोर्ट के साथ-साथ हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ की सभी अधीनस्थ अदालतों, ट्रिब्यूनल में दायर की जाने वाली याचिकाओं, हलफनामे या अन्य दस्तावेजों के लिए एक तरफ छपाई के साथ लीगल पेज (ए 3) के उपयोग करने की वर्तमान प्रथा पर रोक लगाने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता ने बताया कि ए3 पेपर पर, डबल स्पेस के साथ, मार्जिन छोड़ कर शीट के केवल एक तरफ छपाई के आदेश से कागज की जबरदस्त बर्बादी होती है। यह नियम दशकों पहले तैयार किए गए थे जब औपनिवेशिक समय था। उस समय कागज की मोटाई और स्याही की गुणवत्ता के कारण कागज के एक तरफ ही छपाई होती थी। दूसरी तरफ स्याही के रिसाव के कारण उस पर प्रिंटिंग संभव नहीं थी, लेकिन अब पेपर प्रिंटिंग तकनीक और स्याही से संबंधित तकनीकों की प्रगति के चलते यह समस्या नहीं रही है।
याचिकाकर्ता ने बताया कि इस बाबत नियमों में बदलाव को लेकर उसने 27 जनवरी 2024 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के प्रशासनिक व न्यायिक स्तर पर एक मांग पत्र देकर ए-3 साइज की जगह ए-4 कागज का इस्तेमाल करने की मांग की थी लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।
पानी और वृक्षों की बचत
याची ने बताया कि औसतन एक पेड़ से कागज की लगभग 8333 शीट का उत्पादन होता है। 1 पेपर को तैयार करने में लगभग 10 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। 1 जुलाई 2018 से 30 जून 2019 के बीच पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में एक लाख 46 हजार 45 मामले दायर किए गए। यदि एक केस में 50 पन्ने और दो पक्ष मान लिए जाएं तो भी न्यूनतम 4.38 करोड़ पन्नों का इस दौरान इस्तेमाल किया गया। इसके लिए लगभग 5258 पेड़ काटने पड़े और 40.38 करोड़ लीटर पानी बर्बाद हुआ। याची बताया कि यदि याची की मांग मान ली जाए तो इस गणना के अनुसार हाईकोर्ट हर साल 1737 वृक्ष और 15.49 करोड़ लीटर पानी बचा सकता है।
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