राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा एकतरफा आदेश पारित करने और करोड़ों रुपये का हर्जाना लगाने की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और अरविंद कुमार की खंडपीठ ने कहा कि हरित न्यायाधिकरण को न्याय के उत्साह में सावधानी से चलना चाहिए।
एकपक्षीय आदेशों का चलन और करोड़ों रुपये का हर्जाना लगाना पर्यावरण संरक्षण के व्यापक मिशन के लिए प्रतिकूल साबित हुआ है। शीर्ष अदालत ने कहा, यह अफसोस की बात है कि एनजीटी द्वारा बार-बार एकपक्षीय निर्णय लेना, पूर्वव्यापी समीक्षा सुनवाई करना और नियमित रूप से इसे खारिज करना एक चलन बन गया है।
ईमानदारी की नए सिरे से भावना पैदा करना जरूरी
कोर्ट ने कहा कि एनजीटी के लिए प्रक्रियात्मक ईमानदारी की नए सिरे से भावना पैदा करना जरूरी है। उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके कार्यों में न्याय और उचित प्रक्रिया के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन दिखाई दे। ऐसा करने से ही वह पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक के रूप में अपनी स्थिति को दोबारा प्राप्त कर सकता है।
दो फैसलों के खिलाफ अपीलों पर सुनवाई कर रहा था SC
सुप्रीम कोर्ट एनजीटी द्वारा पारित दो फैसलों के खिलाफ अपीलों पर सुनवाई कर रहा था। एक मामले में न्यायाधिकरण ने स्वत: संज्ञान लेकर एकपक्षीय आदेश देते हुए मुआवजा चुकाने को कहा था। दूसरे मामले में एक अपीलकर्ता की ओर से दायर समीक्षा याचिका को एनजीटी ने खारिज कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने दोनों आदेशों को रद्द किया
शीर्ष अदालत ने दोनों आदेशों को रद्द कर दिया और मामले को फिर से हरित न्यायाधिकरण के पास भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि एनजीटी सभी प्रभावित पक्षों को नोटिस जारी करे और उनका पक्ष सुनने के बाद आदेश पारित करे।