MP: विमान हादसा मामले में पायलट से 85 करोड़ रुपए वसूलेगी राज्य सरकार

भोपाल: मध्य प्रदेश के ग्वालियर एयरपोर्ट में बीते साल हुई विमान दुर्घटना मामले में राज्य सरकार ने पायलट को 85 करोड़ रुपए का बिल थमाया है. यह विमान उस वक्त हादसे का शिकार हो गया था जब कोरोना की दूसरी लहर के हाहाकार के बीच वो कुछ दवाइयां और इंजेक्शन लेकर ग्वालियर एयरपोर्ट पर लैंड कर रहा था.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जिस पायलट कैप्टन माजिद अख्तर को यह 85 करोड़ का भारी भरकम बिल थमाया है उन्हें महामारी के दौरान सराहनीय कार्य के लिए कोरोना योद्धा करार दिया गया था.

आरोप तय होने के बाद फैसला

दरअसल मध्य प्रदेश सरकार के राजकीय विमान (बी-200जीटी/वीटी एमपीक्यू) के दुर्घटनाग्रस्त होने के मामले में MP की सरकार ने विमान के पायलट कैप्टन माजिद अख्तर के खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं. उन्हें हादसे के लिए दोषी मानते हुए शासन ने 85 करोड़ रुपये की वसूली का नोटिस भी थमाया है. जवाब आने के बाद शासन अब उनसे वसूली के बारे में फैसला करेगा. हादसे के बाद नागर विमानन महानिदेशालय ने पायलट माजिद अख्तर का लाइसेंस अगस्त 2021 में ही निलंबित कर दिया था.

नोटिस में लिखी थी ये बात

इस फैसले से पहले पायलट को दिए गए नोटिस में लिखा गया था कि इस विमान की रिपेयरिंग पर अब तक करीब 23 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. इस तरह सरकार को 85 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. कैप्टन माजिद को जारी आरोप पत्र में कहा गया था कि क्यों न इस लापरवाही के कारण हो रहे नुकसान की भरपाई आपसे की जाए.

पायलट की सफाई

85 करोड़ रुपये का बिल मिलने पर पायलट ने आरोप लगाया है कि उसे एयरपोर्ट पर लगे बैरियर के बारे में सूचित नहीं किया गया था, जिसके कारण वह दुर्घटना हुई. एक TV चैनल से बातचीत में पायलट ने उस विमान के संचालन से पहले बीमा नहीं होने की जांच की मांग की है. कैप्टन माजिद अख्तर ने कहा कि बीमा नहीं होने से पहले उसको उड़ने की अनुमति आखिर कैसे दी गई.

क्या था मामला?

आपको बता दें कि MP सरकार का यह विमान कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए गुजरात से रेमडेसिविर इंजेक्शन समेत दवाओं के करीब 71 बॉक्स लेकर 7 मई 2021 को लौट रहा था. ग्वालियर हवाई अड्डे पर लैंडिंग के दौरान हादसा हुआ था. विमान लैंडिंग के समय रनवे से करीब तीन सौ फीट पहले लगे अरेस्टर बैरियर से टकरा गया था. जिससे विमान के काकपिट के आगे का हिस्सा, प्रापलर ब्लेड क्षतिग्रस्त हुए थे. जिनमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी.

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