आर्थिक मोर्चे और ढांचागत सुधारों के मामले में देश पटरी पर लौटता दिख रहा है. हालांकि सबसे बड़ी चिंता ये है कि तमाम कोशिशों के बावजूद निजी निवेश और नया रोजगार पैदा करने की दिशा में कुछ खास नहीं दिखाई दे रहा है.
घरेलू मोर्चे पर आर्थिक पैमानों को देखें तो देश की आर्थिक स्थिति ठीकठाक है. 2017-18 के लिए जीडीपी वृद्धि दर 7.4 फीसदी आंकी गई है जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे ज्यादा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष वैश्विक सुस्ती के बीच भारत को एक ”चमकदार क्षेत्र” कह रहा है. 3.2 फीसदी राजकोषीय घाटे और एक फीसदी तक नीचे आ चुके चालू खाता घाटे के साथ ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को दुरुस्त कर दिया है.
भारतीय करेंसी रुपया अभी डॉलर के मुकाबले काफी मजबूत है और 64.40 के पर चल रहा है. खुदरा मुद्रास्फीति तीन फीसदी पर टिकी हुई है जबकि तीन वित्त वर्ष के दौरान खराब प्रदर्शन के बाद निर्यात बहाली की ओर अग्रसर है. यहां के शेयर बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं जो विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है.
ढांचागत सुधारों के लिए प्रोत्साहन के निरंतर प्रयासों ने भारत की वित्तीय तस्वीर को भी चमकदार बना दिया है. बजटीय अनुशासन का मामला हो या जीएसटी का या बैंकों के दिवालियापन से संबद्ध संहिता का मसला, ये सारे कदम दरअसल भारत की राजनीति और आर्थिकी में निहित पुरानी बीमारियों को दुरुस्त करने की तैयारी दिखा रहे हैं.
यूपीए2 पर एनडीए2 भारी
ये मोटे आंकड़े यूपीए-2 के शासनकाल में परेशानी का कारण रहा. उसके शुरुआती तीन साल उच्च मुद्रास्फीति, दोहरे घाटे की समस्या और नीतिगत कमजोरी के मारे हुए थे . इसके उलट नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए-2 की सरकार के आरंभिक तीन साल व्यापक आर्थिक आंकड़ों को बहाल करने, बुनियादी सुधारों को लागू करने और अधिक पारदर्शिता तथा जवाबदेही की ओर प्रोत्साहित करने की ओर समर्पित रहे.