नई दिल्ली, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के आर्थिक अनुसंधान विभाग की शोध रिपोर्ट के अनुसार, RBI रिवर्स रेपो दर में 0.20 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो बैंक इसका सीधा भार ग्राहकों पर डाल सकते हैं। इसके लिए बैंक, ग्राहकों को देने वाले लोन को महंगा करते हुए ब्याज दरें बढ़ा सकते हैं। रिपोर्ट को भारतीय स्टेट बैंक के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ सौम्य कांति घोष ने तैयार किया है। रिपोर्ट में कहा गया कि FY23 बाजार उधार का आकार 14.3 लाख करोड़ रुपये का है और वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में भारतीय ऋण बाजार को शामिल करने पर कोई प्रगति नहीं हुई है, फिर भी सवाल उठता है कि क्या RBI को बड़े उधार कार्यक्रम को सपोर्ट करने के प्रयास में तरलता सामान्यीकरण को डिले (Delay) करना पड़ सकता है। जबकि, बजट को राजकोषीय पारदर्शिता के लिए पूरक बनाने की आवश्यकता है क्योंकि यह निश्चित रूप से वित्त वर्ष 24 तक सभी ऑफ बैलेंस पीएसयू उधार (जीडीपी का 7.7%) और राजकोषीय घाटा (6.4%) को संरेखित करने के लिए है।
रिपोर्ट में कहा गया कि बड़ा सवाल आरबीआई के डेट (Debt) मैनेजमेंट और लिक्विडिटी मैनेजमेंट ऑपरेशंस का धुंधला होना है। यह फिर से सवाल उठाता है कि क्या आरबीआई के ऋण प्रबंधन कार्यों को मौद्रिक प्रबंधन से अलग करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में कहा गया कि सितंबर 2021 तक भारत सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियों के स्वामित्व पैटर्न के आधार पर और केंद्र की कुल शुद्ध उधारी 11.2 लाख करोड़ रुपये को देखते हुए, हमारा मानना है कि बैंकों से प्रतिभूतियों की मांग लगभग 4.2 लाख करोड़ रुपये होनी चाहिए (एनडीटीएल में 10 फीसदी और एसएलआर में 27% की वृद्धि को देखते हुए)।
बीमा क्षेत्र 2.7 लाख करोड़ रुपये सब्सक्राइब कर सकता है। इसका मतलब है कि आरबीआई को अभी भी ओएमओ खरीद के माध्यम से कम से कम 2.0 लाख करोड़ रुपये की मांग सुनिश्चित करनी होगी। इससे चलनिधि सामान्यीकरण का प्रश्न जटिल हो जाता है। यह एक विडंबना है कि जनवरी 2022 के अंत तक डेटेड गवर्नमेंट सिक्योरिटीज की बकाया राशि लगभग 80.8 लाख करोड़ रुपये है जिसे 2061 तक चुकाया जाना है। कुछ बैंकों और बीमा कंपनियों की हिस्सेदारी इसमें ~62% है। बैंक और बीमा कंपनियां बड़े पैमाने पर सरकारी प्रतिभूतियों के बाजार के प्रबंधन का बोझ उठाती हैं। इसीलिए, अगला प्रश्न रिडेम्शन पैटर्न का है।
रिपोर्ट में कहा गया कि चालू वित्त वर्ष में 8.27 ट्रिलियन की कुल जारी गवर्नमेंट सिक्योरिटीज में 0-5 और 5-10 वर्षों में पुनर्भुगतान के लिए देय बांड कुल मूल्य का क्रमशः 28.4% और 24% है, जिसका मतलब है कि ~48% जुटाई गई राशि 10 साल से अधिक की परिपक्वता वाले बॉन्डस के माध्यम से आई।
रिपोर्ट में कहा गया कि आरबीआई को वित्तीय वर्ष 2023 में बकाया के साथ-साथ ताजा/जारी होने वाले बॉन्ड्स की संरचना को मध्यम अवधि के प्रस्तावों के साथ बदलना पड़ सकता है।