एनसीपीसीआर ने स्ट्रीट चिल्ड्रन के लिए मानक संचालन प्रक्रिया तैयार की है। इसके मुताबिक चाइल्ड केंद्रित नीति के बजाए परिवार केंद्रित नीति पर जोर दिया जाएगा। एक सर्वे के मुताबिक दस शहरों में करीब 2 लाख बच्चे सड़कों पर हैं।
नई दिल्ली। सड़कों पर घूमते बेघर बेसहारा बच्चों को उज्ज्वल भविष्य देने और पुनर्वासित करने के लिए राष्ट्रीय बाल आयोग (एनसीपीसीआर) ने कमर कस ली है। इनके पुनर्वास के लिए अभी तक किये गए प्रयासों में ज्यादा सफलता न मिलने पर आयोग ने अपनी सोच और तरीका बदल दिया है। स्ट्रीट चिल्ड्रन को बसाने के लिए बाल आधारित नीति के बजाए अब परिवार आधारित नीति अपनाई जा रही है। सड़क पर घूमते बच्चों को संरक्षित करने के लिए उनके परिवारों को पुनर्वासित किया जाएगा।
एक सर्वे के मुताबिक, देश के 10 शहरों में करीब दो लाख बच्चे सड़क पर हैं। जिन्हें एक वर्ष के भीतर पुनर्वासित करने का लक्ष्य है। 50 धार्मिक स्थलों वाले शहरों को भी बाल भिक्षावृत्ति मुक्त बनाने का लक्ष्य है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बाल आयोग ने हाल ही मे स्ट्रीट चिल्ड्रन की देखभाल और संरक्षण के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। इसमें तय है कि सड़क पर पाए गए बेसहारा बच्चे को किस तरह संरक्षण और देखरेख दी जाएगी।
बच्चों के संरक्षण और उचित विकास के लिए कई कानून और योजनाएं हैं, लेकिन सड़क के बच्चों को बसाने मे पूरी तरह सफलता नहीं मिली बल्कि समस्या बढ़ती गई। राष्ट्रीय बाल आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो कहते हैं कि अब उन्होंने नजरिया और तरीका बदल दिया है बाल केंद्रित नीति के बजाए परिवार केंद्रित नीति अपनाई जा रही है। बच्चे को परिवार से अलग नहीं देखा जा सकता ऐसे में बच्चे को संरक्षित करने के लिए पहले उसके परिवार को पुनर्वासित करना होगा, ताकि बच्चा सड़क पर घूमता न दिखे वह स्कूल जाए और सुरक्षित माहौल मे रहे।
सेव द चिल्ड्रन संस्था के सर्वे के मुताबिक चार राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के 10 शहरों में करीब 2 लाख बच्चे सड़कों पर हैं। इनमे ज्यादातर कचरा बीनते हैं या भीख मांगते हैं। ये बच्चे उत्पीड़न का शिकार होते है कई बार नशे की चपेट में भी होते हैं। इस बहुआयामी समस्या में मौजूदा एसओपी उतना प्रभावी नहीं हो रहा था, इसलिए आयोग ने मौजूदा नियम कानूनों में तय प्रक्रिया को कानूनों की व्यापक व्याख्या के साथ नयी एसओपी तैयार की है जिसमें बच्चे को एक परिवार के रूप में रखा गया है। स्ट्रीट चिल्ड्रन में मुख्यता तीन श्रेणियां हैं।
ये हैं तीन श्रेणियां-
एक वे जो अकेले और बेसहारा हैं। ये या तो घर से भागे होते हैं या अनाथ हैं अथवा परिस्थितिवश बेसहारा हैं। एसओपी में इन्हें तत्काल चाइल्ड केयर, एडाप्शन या फोस्टर होम (पालन गृह) मे भेजने की प्रक्रिया तय है। बच्चे के आधार वैरिफिकेशन भी बात है, ताकि अगर पहले से आधार बना हुआ है तो परिवार का पता चल जाएगा। दूसरी श्रेणी उनकी है जो दिन मे सड़क पर भीख मांगते है और रात मे आसपास की झुग्गियों में अपने माता पिता के पास चले जाते हैं। ऐसे बच्चों और परिवार की काउंसलिंग होगी। बच्चे का स्कूल या आंगनवाड़ी में एडमीशन होगा स्कूल के बाद माता पिता के काम से लौटने तक बच्चे को ओपन शेल्टर मे रखा जाएगा, जो कि डे केयर की तरह होते है। तीसरी श्रेणी में बच्चों सहित पूरा परिवार सड़क पर भीख मांगता है।
इसमें परिवार की काउंसलिंग होती है। गरीबों के कल्याण के लिए चल रही 37 सरकारी योजनाओं से उस परिवार को जोड़ा जाता है, ताकि परिवार जीवकोपार्जन में समर्थ हो और बच्चा सड़क पर भीख मांगने के बजाए स्कूल जाए उसका भविष्य सुरक्षित हो। एसओपी को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, पुलिस आदि को संवेदनशील बनाने की ट्रेनिंग होगी। इसके अलावा बाल आयोग विभिन्न संस्थाओं से बातचीत कर रहा है। देश के 50 धार्मिक स्थलों वाले शहरों को बाल भिक्षावृत्ति मुक्त बनाने के लिए एनजीओ से बातचीत चल रही है। सड़कों पर रहने वाले 2 लाख बच्चों को बसाने के लिए एप आधारित डैशबोर्ड तैयार किया जा रहा है उसमें हर बच्चे का ब्योरा रहेगा और लाइव निगरानी होगी।