पर्यटन

गर्मियों की छुट्टियां बिताने के लिए बेस्ट हैं ये रंग बिरंगे बीच

ज्यादातर लोगों को गर्मियों की छुट्टियां बिताने के लिए किसी ठंडी जगह पर जाना पसंद होता है. वीकेंड का मजा लेने के लिए ज्यादातर लोग समुद्र तट बीच और हिल स्टेशन पर घूमने जाते हैं. समुद्र तट का खूबसूरत नजारा …

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यहाँ हैं अगर घूमने का मन तो करना पड़ेगा कौन्ट्रक्ट साइन, शहर जान के आप हैरान हो जायेंगे…

आप अगर अभी अमृतसर जाएं, तो वहां पर बाघा बार्डर पर जाकर देशभक्ति के अलग रंग को देख सकती हैं. भारत-पाकिस्तान के बार्डर पर घूमने के लिए रोजाना हजारों लोग वाघा पर आते हैं. कड़ी सुरक्षा के बीच पर्यटक यहां …

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छत्तीसगढ़ में मौजूद है मिनी शिमला

गर्मियों के मौसम में घूमने के लिए अक्सर लोगों को ऐसी जगह पर जाना पसंद होता है जहां वह शांति, सुकून और ठंडक के साथ अपनी छुट्टियों का मजा ले सकें. इसलिए गर्मियों के मौसम में ज्यादातर लोग शिमला, मनाली, …

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मध्यप्रदेश,, का खूबसूरत हिलस्टेशन पंचमढी, यहां पहाड़ों के अलावा झरने देखने आते हैं टूरिस्ट

अगर आप ऑफ बीट हिल स्टेशन पर जाने जाना चाहते हैं, तो भारत का खूबसूरत हिल स्टेशन पंचमढ़ी आपको किसी जन्नत से कम नहीं लगेगा. यहां के खूबसूरत नजारे देखकर आप रोजाना की भागदौड़ भूलकर तनावमुक्त हो जाएंगे. आइए, आपको सैर कराते हैं पंचमढ़ी की खूबसूरत वादियों की. पहले पंचमढ़ी पर गोंड जनजाति का राज था. ब्रिटिश राज से पहले यह इसी जनजाति की राजधानी थी. 1887 में ब्रिटिश सैनिक कैप्टन जेम्स फोर्स्थ ने इस शहर को केंद्र में रखा था और इसके बाद अंग्रेजों ने भी पंचमढ़ी को मध्यप्रदेश की राजधानी बनाया. धूपगढ़ यह सतपुड़ा रेंज का सबसे ऊंचा प्वाइंट है. इसे सनराइज और सनसेट प्वाइंट के नाम से भी जाना जाता है. चारुगढ़ यह दूसरा सबसे ऊंचा प्वाइंट है. इसका धार्मिक महत्व भी है क्योंकि इसके शिखर पर एक शिव मंदिर स्थित है.

अगर आप ऑफ बीट हिल स्टेशन पर जाने जाना चाहते हैं, तो भारत का खूबसूरत हिल स्टेशन पंचमढ़ी आपको किसी जन्नत से कम नहीं लगेगा. यहां के खूबसूरत नजारे देखकर आप रोजाना की भागदौड़ भूलकर तनावमुक्त हो जाएंगे. आइए, आपको …

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रेगिस्तान, में बसा हिल स्टेशन माउंट आबू, नेचर और कल्चर की खूबसूरती एक साथ

राजस्थान के माउंट आबू में 3937 फुट की ऊंचाई पर स्थित नक्की झील लगभग ढाई किलोमीटर के दायरे में है, जहां बोटिंग करने का लुत्फ अलग ही है। हरीभरी वादियां, खजूर के वृक्षों की कतारें, पहाडि़यों से घिरी झील और झील के बीच आईलैंड, कुल मिलाकर देखें तो सारा दृश्य बहुत ही मनमोहक है। सनसेट प्वाइंट यहां से देखिए, सूर्यास्त का खूबसूरत नजारा, ढलते सूर्य की सुनहरी रंगत कुछ पलों के लिए पर्वत श्रृंखलाओं को कैसे स्वर्ण मुकुट पहना देती है। यहां डूबता सूरज ‘बॉल’ की तरह लटकते हुए दिखता है।

गर्मियों में रेगिस्तान में कौन जाना चाहता है? लेकिन अगर कोई आपसे कहे कि रेगिस्तान में भी एक ऐसा खूबसूरत हिल स्टेशन है, जो किसी दूसरे राज्यों के हिल स्टेशन से कम नहीं है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान …

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नागालैंड, की जोखू वैली जहां कैम्पिंग करने आते हैं पर्यटक, जानें क्या है यहां खास

जोखू वैली को कभी बेजान मानकर इसके अपने लोगों ने ही इससे मुंह मोड़ लिया था। मगर आज वही लोग इसकी खूबसूरती का बखान करते नहीं थकते। उंचे-नीचे हरे पहाड़, रहस्य से भरे भूतिया ठूंठ, नीला आसमान, बीच में शीशे सी चमकती नदी। इन सबके बीच बैंगनी रंग के जोखू लिली के फूल, जो दूसरे सफेद, पीले व लाल रंग के फूलों के साथ एक इंद्रधनुषी पेंटिंग तैयार करते हैं। जोखू लिली के फूल यहां के अलावा कहीं और नहीं मिलते और वह भी सिर्फ मानसून में। यहां पहुंचने का रास्ता थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन 'स्वर्ग' कहां आसानी से दिखाई देता है। करीब एक घंटे की खड़ी चढ़ाई के बाद आगे बांस के झुरमुटों के बीच से करीब 3 घंटे की ट्रैकिंग के बाद आपको इस खूबसूरत वैली की पहली झलक देखने को मिलती है। यकीन मानिए छोटे-छोटे टीलों से दिखने वाले हरे पहाड़, रंग-बिरंगे फूल और उन पर पड़ती सूरज की किरणें आपको पहली नजर में ही मोह लेंगी। आप चाहें तो यहां पर रात भी बिता सकते हैं। पर्यटन विभाग की मदद से यहां पर रहने के लिए दो कमरे और एक किचन तैयार किया गया है, जहां आपको आधारभूत चीजें मिल जाएंगी। यहां कुछ पैसे खर्च कर आप बिस्तर, तकिया, कंबल सब कुछ पा सकते हैं। हालांकि आप चाहें तो अपना टेंट भी लगा सकते हैं। वैली में बहती नदी के किनारे कैंप लगाने का रोमांच अलग ही है।

जोखू वैली को कभी बेजान मानकर इसके अपने लोगों ने ही इससे मुंह मोड़ लिया था। मगर आज वही लोग इसकी खूबसूरती का बखान करते नहीं थकते। उंचे-नीचे हरे पहाड़, रहस्य से भरे भूतिया ठूंठ, नीला आसमान, बीच में शीशे …

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उत्तराखंड का छोटा-सा हिल स्टेशन औली, जो हर मौसम में लगता है खूबसूरत,

जब उत्तर भारत में सर्दी समाप्ति की ओर है तो यहां करते हैं लोग बर्फबारी का इंतजार। बर्फ पर अटखेलियां आपको भी लुभाती हैं तो उत्तराखंड के चमोली स्थित औली से मुफीद जगह देश में कहीं और नहीं। हालांकि मौसम अनुकूल न होने की वजह से इस बार यहां अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग रेस का आयोजन टल गया, पर कुदरत के इस नायाब उपहार को निहारने वालों की भीड़ में कोई कमी नहीं आई है। तो फिर आज चलते हैं औली की सैर पर.. टीवी चैनलों, अखबारों में बर्फ से लकदक पहाड़ों के नजारे देखने भर से ही सर्द से सर्द मौसम में भी गर्मजोशी छा जाती है तो जब आप ऐसे स्थलों पर चले जाएं तो क्या होगा? यकीनन ऐसी कल्पनाओं से भी खूबसूरत है औली। एक तरफ पूरी दुनिया जहां कोरिया में विंटर ओलंपिक के रोमांच में डूबी है तो हम भी यह क्यों भूलें कि हमारे देश में भी एक ऐसी जगह है जहां बर्फ पर स्कीइंग का आनंद लेने के लिए दुनिया भर से पर्यटक खिंचे चले आते हैं। पर केवल सर्दियों के मौसम में ही नहीं बल्कि इसकी सुंदरता कुछ ऐसी है कि पर्यटकों की भीड़ यहां हर मौसम में बनी रहती है। बर्फ की सफेद चादर ओढ़े पहाड़ों पर सूर्योदय हो या सूर्यास्त, औली हर पहर में एक अलग रंग में खूबसूरती बिखेरता नजर आएगा और यह निर्णय करना मुश्किल होगा कि इस सौंदर्य का कौन सा रंग सबसे खूबसूरत है। दिन के वक्त सूर्य की रोशनी से यहां बर्फ से पटे पहाड़ चांदी-सी चमक बिखेरते हैं, तो शाम के समय आप सूरज और चांद को धरती के बिल्कुल पास-पास महसूस करेंगे। आपने पहले भी बर्फबारी का आनंद लिया होगा लेकिन यहां बर्फ इतना अद्भुत है कि आप उसे चख भी सकते हैं। चमोली स्थित हिम क्रीड़ा स्थल को उत्तराखंड का स्वर्ग कहा जाता है। पूरी दुनिया इसे बेहतरीन स्की रिजॉर्ट के रूप में जानती है पर जो केवल कुदरत को करीब से निहारने का जुनून लिए होते हैं उनके लिए औली कुदरत का वरदान है। यहां केवल बर्फ ही नहीं, साथ में है भरपूर चमकती हरियाली. हरे-भरे खेत, छोटे-बड़े देवदार के पेड़ों के बीच ऊंची-नीची चट्टानों पर बिछी मुलायम हरी घास, पतले और घुमावदार रास्ते और जहां तक नजर आए, वहां तक केवल पहाड़ ही दिखते हैं जो इन दिनों चांदी सा चमक बिखेर रहे हैं।

जब उत्तर भारत में सर्दी समाप्ति की ओर है तो यहां करते हैं लोग बर्फबारी का इंतजार। बर्फ पर अटखेलियां आपको भी लुभाती हैं तो उत्तराखंड के चमोली स्थित औली से मुफीद जगह देश में कहीं और नहीं। हालांकि मौसम …

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पधारो म्हारे देश… शाही अंदाज के साथ लजीज जायकों के लिए भी मशहूर है राजस्थान

घी में डूबी करारी बाटी और लहसुन की खुशबू से महकती गरमा-गरम दाल का मिश्रण जब मुंह में घुलता है तो तीखेपन और घी का एक विशिष्ट स्वाद आता है। रेगिस्तान के कठोर पानी की वजह से राजस्थान के व्यंजनों में भारी मात्रा में तेल एवं घी का उपयोग होता है जो जैसलमेर में बने भोजन को और भी स्वादिष्ट बना देता है। 'कैर सांगरी' नामक व्यंजन मानो जैसे यहां के 'ड्राई फ्रूट्स' हों। यह एक तरह से यहां के स्थानीय लोगों का मनभावन पकवान है। कैर नामक छोटी-छोटी बेर सर्दियों में रेगिस्तान में उगती है जिसको सांगरी नामक ताजी फलियों के साथ मिलाकर ढेर सारे मसालों और तेल में बनाया जाता है। इसके अलावा, गट्टे की सब्जी भी जैसलमेर के लोगों की खास पसंद है जिसे आप टेस्ट कर सकते हैं। यदि आप इस सारे व्यंजनों को 'स्पेशल राजस्थानी थाली' में पारंपरिक तरीके से परोसे हुए खाना चाहते हैं तो आप नाचना हवेली में बने रेस्टोरेंट में राजस्थानी शैली में भोजन का आनंद उठा सकते हैं। आप इस शहर के मशहूर व्यंजनों के अलावा जैसलमेर के शाही परिवार का पसंदीदा व्यंजन भी चख सकते हैं। महारानी राशेश्र्वरीजी बताती हैं, ' जब भी पूरा परिवार जैसलमेर में होता है तो लहसुन की चटनी के साथ 'बाजरे का सोगरा' खाना जरूर खाते हैं। बाजरे का सोगरा असल में बाजरे की रोटी होती है जिस पर भारी मात्रा में ताजा मक्खन लगाया जाता है और च्यादातर गट्टे की सब्जी के साथ खाया जाता है। यदि आपको मौका मिले तो टूटे हुए गेहूं से बनने वाला 'लापसी' नामक स्वीट डिश जरूर चखें। सब्जियों के अभाव के कारण लाल मांस भी इस क्षेत्र में काफी मशहूर है। शाही परिवार तथा जैसलमेर कि लोगो के बीच 'मटन के सुले' यानी मटन के टिक्के काफी पसंद किए जाते हैं। पर जैन धर्म की लोकप्रियता के कारण आपको घरों में वेजिटेरियन खाने का वर्चस्व च्यादा देखने मिलेगा।

घी में डूबी करारी बाटी और लहसुन की खुशबू से महकती गरमा-गरम दाल का मिश्रण जब मुंह में घुलता है तो तीखेपन और घी का एक विशिष्ट स्वाद आता है। रेगिस्तान के कठोर पानी की वजह से राजस्थान के व्यंजनों …

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500 साल पहले इस गुरुद्वारे की खुद गुरुनानक जी ने की थी स्थापना, देखिये क्या है खास!

वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फतेह... जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल. यही कुछ नारे हैं जो आजकल हर गुरुद्वारे में गूंज रहे हैं. हर गुरुद्वारे में गुरुनानक साहेब की जयंती के लिए खास तैयारी की जा रही है. वैसे तो हर गुरुद्वारा अपने आप में खास है लेकिन आज हम आपको उस गुरुद्वारे के बारे में बताएंगे जिसकी स्थापना खुद गुरुनानक साहेब ने की थी. जब 1505 में गुरुनानक जी पहली बार दिल्ली आए थे तब उन्होंने इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी, इसीलिए ये गुरुद्वारा सिख समुदाय के लिए खासा महत्व रखता है. हरविंदर सिंह चेयरमेन, नानक प्याऊ गुरुद्वारा, का कहना है कि ये बहुत प्राचीन गुरुद्वारा है और दिल्ली का पहला गुरुद्वारा है. इसलिए हम यहां बड़े ही उत्साह के साथ ये जयंती मनाते हैं. कैसे नाम रखा गया इसका नाम 'नानक प्याऊ गुरुद्वारा' इस गुरुद्वारे का नाम है नानक प्याऊ गुरुद्वारा. अब आप लोग सोच रहे होंगे की इस गुरुद्वारे का नाम नानक प्याऊ क्यों है? भला ये कैसा नाम हुआ? तो आपको बताते है इस नाम के पीछे की पूरी कहानी. दरअसल, जब गुरुनानक जी पहली बार दिल्ली आए तब वो इसी जगह पर रुके थे. आज इस जगह को जीटी करनाल रोड के नाम से जाना जाता है. कहते हैं उस समय इस इलाके में पानी पीना नसीब नहीं होता था. जमीन से खारा पानी निकलता था, जिसके कारण लोग परेशान हो रहे थे. बच्चों की तबियत बिगड़ रही थी. तभी गुरुनानक साहेब ने अपनी शक्ति से, अपनी दृष्टि से, जमीन से मीठा पानी निकाला. जिसके बाद यहां रहने वाले तमाम लोगो ने यहां पानी पिया. जिसके बाद उन्हें हो रही बीमारियां भी खत्म हो गईं. ये सिलसिला 500 साल बाद यानि आज भी लगातार चल रहा है. आज भी कुंए से मीठा पानी निकलता है. आज यहां एक प्याऊ है. इसी कारण इस गुरुद्वारे का नाम नानक प्याऊ गुरुद्वारा रखा गया था. यहां के लोगों का मानना है कि देश भर से लोग यहां आते हैं और इस पानी को पीकर जाते हैं जिसके बाद उनकी तमाम तकलीफें, तमाम बीमारियां खत्म हो जाती हैं. 500 सालों से चला आ रहा है लंगर नानक प्याऊ गुरुद्वारे में सबसे पहले लंगर खुद गुरुनानक जी ने शुरू किया था और तब से अब तक यानि 500 सालों से यहां लंगर इसी तरह चलता आ रहा है. रोजाना ही हजारों लोग यहां खाना खाने आते हैं. कोई भी भूखा नहीं जाता .लक्खा सिंह का कहना है कि 500 सालों से यहां लंगर इसी तरह चलता आ रहा है. मगर गुरुनानक जी की जयंती के उपलक्ष में यहां पकवान बनाये जा रहे हैं. मटर पनीर , मिक्स वेज से लेकर खीर तक की व्यवस्था यहां की गई है. यहां इस उत्सव को देख ऐसा लगता है जैसे खुद गुरुनानक जी यहां मौजूद हों और उनका जन्मदिन मनाया जा रहा हो. इस दिन यहां महिलाएं भी लंगर के लिए सेवा देने में पीछे नहीं हटती. गुरुद्वारों में खास तैयारियां दिल्ली के गुरुद्वारों में लंगर से लेकर सजावट तक खास तैयारी की जा रही हैं. गुरुनानक साहेब की 548 वीं जयंती. सिख समुदाय के लिए इससे बड़ा पर्व और कोई नहीं . इसी के चलते घरों से लेकर गुरुद्वारों तक उत्सव मनाया जाता है. पकवान बनाये जाते हैं, सजावट की जाती है.. केक काटा जाता है और गुरुद्वारों में कीर्तन किया जाता है. चूंकि गुरुनानक साहेब ने ही इस नानक प्याऊ की स्थापना की थी इस वजह से यहां खास तैयारी की जा रही हैं. गुरुद्वारे के कोने-कोने को फूलों से सजाया जा रहा है. पूरे गुरुद्वारे को लाइट से सजा दिया गया है. यह कहना गलत नहीं होगा कि दिल्ली में गुरुनानक जी की जयंती मानाने के लिए तमाम तैयारियां कर ली गई हैं और अब आने वाले दो दिनों तक गुरुद्वारों में खासी रौनक रहेगी.

वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फतेह… जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल. यही कुछ नारे हैं जो आजकल हर गुरुद्वारे में गूंज रहे हैं. हर गुरुद्वारे में गुरुनानक साहेब की जयंती के लिए खास तैयारी की …

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स्पा लेना है तो ज़रूर जाये आइसलेंड के ब्लू लगून

सर्दियों के मौसम लोगो को घूमना फिरना बहुत पसंद होता है, पर ऐसे में उन्हें ये समझ नहीं आता है की घूमने के लिए कहा जाया जाये, क्योकि एक ही जैसी जगह पर घूम घूम कर बोरियत होने लगती है, …

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