सतपुड़ा पहाडि़यों से घिरा यह नेशनल पार्क 1945 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। वैसे तो यह मध्य प्रदेश में आता है, लेकिन यहां पहुंचने वाले अधिकतर पर्यटक नागपुर होकर आते हैं, क्योंकि नागपुर से यहां तक बढि़या सड़क मार्ग है। वैसे, मध्य प्रदेश के जबलपुर से होकर भी यहां जाया जा सकता है। अतीत के पन्नों को खंगाल कर देखें, तो पता चलता है कि 1879-1910 ईस्वी तक यह क्षेत्र अंग्रेजों के शिकार का प्रमुख स्थल था। कान्हा को अभयारण्य के रूप में 1933 में स्थापित किया गया, जबकि देश की आजादी के 8 साल बाद 1955 में इसे नेशनल पार्क घोषित किया गया। यहां अनेक पशु-पक्षियों को संरक्षित किया गया है। रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब और धारावाहिक जंगल बुक की प्रेरणा भी इसी जगह से ली गई थी। पुस्तक में वर्णित यह स्थान मोगली, बगीरा, शेरखान आदि पात्रों का निवास स्थल है। कान्हा एशिया के सबसे खूबसूरत वन्यजीव रिजर्वो में से एक माना जाता है। यहां के खुले घास के बड़े मैदानों में काला हिरन, बारहसिंहा, सांभर और चीतल एक साथ नजर आते हैं। कान्हा के टाइगर अमूमन लोग यहां पर टाइगर देखने आते हैं। कान्हा नेशनल पार्क में मौजूदा समय में कुल करीब 131 टाइगर हैं। लेकिन यहां पर सबसे ज्यादा लोकप्रिय टाइगर है मुन्ना। संख्या के लिहाज से मुन्ना को टी17 का नाम दिया गया है। 2002 में पैदा हुआ यह मुन्ना टाइगर पर्यटकों के साथ-साथ यहां के लोगों में भी खासा लोकप्रिय है। आज 16 साल की उम्र में भी इसकी फुर्ती का जवाब नहीं है और मौजूदा समय में यह कान्हा के किसली हिस्से पर अपनी दादागिरी जमाए हुए है। जहां इसके समय के कई अन्य टाइगर या तो वर्चस्व की लड़ाई में मारे गए या फिर गायब हो गए, वहीं मुन्ना अपनी पूरी चमक के साथ कायम है। यहां दाल-बाटी का तीखा-चटपटा तो मावा कचौड़ी का मीठा स्वाद हर किसी को बना देता है अपना कायल यह भी पढ़ें बारहसिंघा के लिए मशहूर बिना वीजा दुनिया के इन खूबसूरत देशों में लें घूमने-फिरने का मजा यह भी पढ़ें 20 साल पहले विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी बारहसिंहा की प्रजातियां भी यहां देखने को मिल जाती हैं। कटीले तारों की फेंसिंग करके यहां पर बारहसिंघा को संरक्षित किया गया। मौजूदा गणना में अब यहां पर करीब 1000 से भी अधिक बारहसिंघा हो गए हैं। जिस तरह से इन दुर्लभ जानवरों को संरक्षित किया गया, उसकी सराहना पूरी दुनिया में हुई है। दिसंबर माह के अंत से जनवरी के मध्य तक बारहसिंगों के प्रजनन का समय रहता है। अगर आप इस समय यहां घूमने आएंगे, तो इनको काफी करीब से देख पाएंगे।

गायब होने की कगार पर पहुंच चुके बारहसिंगा को इस नेशनल पार्क में देख पाना है मुमकिन

सतपुड़ा पहाडि़यों से घिरा यह नेशनल पार्क 1945 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। वैसे तो यह मध्य प्रदेश में आता है, लेकिन यहां पहुंचने वाले अधिकतर पर्यटक नागपुर होकर आते हैं, क्योंकि नागपुर से यहां तक बढि़या सड़क मार्ग है। वैसे, मध्य प्रदेश के जबलपुर से होकर भी यहां जाया जा सकता है। अतीत के पन्नों को खंगाल कर देखें, तो पता चलता है कि 1879-1910 ईस्वी तक यह क्षेत्र अंग्रेजों के शिकार का प्रमुख स्थल था। कान्हा को अभयारण्य के रूप में 1933 में स्थापित किया गया, जबकि देश की आजादी के 8 साल बाद 1955 में इसे नेशनल पार्क घोषित किया गया। यहां अनेक पशु-पक्षियों को संरक्षित किया गया है।सतपुड़ा पहाडि़यों से घिरा यह नेशनल पार्क 1945 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। वैसे तो यह मध्य प्रदेश में आता है, लेकिन यहां पहुंचने वाले अधिकतर पर्यटक नागपुर होकर आते हैं, क्योंकि नागपुर से यहां तक बढि़या सड़क मार्ग है। वैसे, मध्य प्रदेश के जबलपुर से होकर भी यहां जाया जा सकता है। अतीत के पन्नों को खंगाल कर देखें, तो पता चलता है कि 1879-1910 ईस्वी तक यह क्षेत्र अंग्रेजों के शिकार का प्रमुख स्थल था। कान्हा को अभयारण्य के रूप में 1933 में स्थापित किया गया, जबकि देश की आजादी के 8 साल बाद 1955 में इसे नेशनल पार्क घोषित किया गया। यहां अनेक पशु-पक्षियों को संरक्षित किया गया है।   रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब और धारावाहिक जंगल बुक की प्रेरणा भी इसी जगह से ली गई थी। पुस्तक में वर्णित यह स्थान मोगली, बगीरा, शेरखान आदि पात्रों का निवास स्थल है। कान्हा एशिया के सबसे खूबसूरत वन्यजीव रिजर्वो में से एक माना जाता है। यहां के खुले घास के बड़े मैदानों में काला हिरन, बारहसिंहा, सांभर और चीतल एक साथ नजर आते हैं।  कान्हा के टाइगर  अमूमन लोग यहां पर टाइगर देखने आते हैं। कान्हा नेशनल पार्क में मौजूदा समय में कुल करीब 131 टाइगर हैं। लेकिन यहां पर सबसे ज्यादा लोकप्रिय टाइगर है मुन्ना। संख्या के लिहाज से मुन्ना को टी17 का नाम दिया गया है। 2002 में पैदा हुआ यह मुन्ना टाइगर पर्यटकों के साथ-साथ यहां के लोगों में भी खासा लोकप्रिय है। आज 16 साल की उम्र में भी इसकी फुर्ती का जवाब नहीं है और मौजूदा समय में यह कान्हा के किसली हिस्से पर अपनी दादागिरी जमाए हुए है। जहां इसके समय के कई अन्य टाइगर या तो वर्चस्व की लड़ाई में मारे गए या फिर गायब हो गए, वहीं मुन्ना अपनी पूरी चमक के साथ कायम है।   यहां दाल-बाटी का तीखा-चटपटा तो मावा कचौड़ी का मीठा स्वाद हर किसी को बना देता है अपना कायल यह भी पढ़ें    बारहसिंघा के लिए मशहूर   बिना वीजा दुनिया के इन खूबसूरत देशों में लें घूमने-फिरने का मजा यह भी पढ़ें 20 साल पहले विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी बारहसिंहा की प्रजातियां भी यहां देखने को मिल जाती हैं। कटीले तारों की फेंसिंग करके यहां पर बारहसिंघा को संरक्षित किया गया। मौजूदा गणना में अब यहां पर करीब 1000 से भी अधिक बारहसिंघा हो गए हैं। जिस तरह से इन दुर्लभ जानवरों को संरक्षित किया गया, उसकी सराहना पूरी दुनिया में हुई है। दिसंबर माह के अंत से जनवरी के मध्य तक बारहसिंगों के प्रजनन का समय रहता है। अगर आप इस समय यहां घूमने आएंगे, तो इनको काफी करीब से देख पाएंगे।

रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब और धारावाहिक जंगल बुक की प्रेरणा भी इसी जगह से ली गई थी। पुस्तक में वर्णित यह स्थान मोगली, बगीरा, शेरखान आदि पात्रों का निवास स्थल है। कान्हा एशिया के सबसे खूबसूरत वन्यजीव रिजर्वो में से एक माना जाता है। यहां के खुले घास के बड़े मैदानों में काला हिरन, बारहसिंहा, सांभर और चीतल एक साथ नजर आते हैं।

कान्हा के टाइगर

अमूमन लोग यहां पर टाइगर देखने आते हैं। कान्हा नेशनल पार्क में मौजूदा समय में कुल करीब 131 टाइगर हैं। लेकिन यहां पर सबसे ज्यादा लोकप्रिय टाइगर है मुन्ना। संख्या के लिहाज से मुन्ना को टी17 का नाम दिया गया है। 2002 में पैदा हुआ यह मुन्ना टाइगर पर्यटकों के साथ-साथ यहां के लोगों में भी खासा लोकप्रिय है। आज 16 साल की उम्र में भी इसकी फुर्ती का जवाब नहीं है और मौजूदा समय में यह कान्हा के किसली हिस्से पर अपनी दादागिरी जमाए हुए है। जहां इसके समय के कई अन्य टाइगर या तो वर्चस्व की लड़ाई में मारे गए या फिर गायब हो गए, वहीं मुन्ना अपनी पूरी चमक के साथ कायम है।

बारहसिंघा के लिए मशहूर

20 साल पहले विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी बारहसिंहा की प्रजातियां भी यहां देखने को मिल जाती हैं। कटीले तारों की फेंसिंग करके यहां पर बारहसिंघा को संरक्षित किया गया। मौजूदा गणना में अब यहां पर करीब 1000 से भी अधिक बारहसिंघा हो गए हैं। जिस तरह से इन दुर्लभ जानवरों को संरक्षित किया गया, उसकी सराहना पूरी दुनिया में हुई है। दिसंबर माह के अंत से जनवरी के मध्य तक बारहसिंगों के प्रजनन का समय रहता है। अगर आप इस समय यहां घूमने आएंगे, तो इनको काफी करीब से देख पाएंगे।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com