New Delhi: राजेन्द्र सिंह भारत में एक जाना पहचाना नाम, जो प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। वह प्राकृतिक संसाधन खासकर जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने के लिए जाने जाते हैं। 6 अगस्त 1959 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के डौला गांव में जन्में राजेंद्र सिंह राजस्थान के जल व्यक्ति के रुप में जाने जाते हैं। राजेंद्र सिंह के पिता एक किसान थे और उनके पास एक एकड़ की जमीन पर खेती की व्यवस्था थी, जहां वह गन्ना, धान और गेहूँ आदि फसलें उगाते थे। राजेंद्र का बचपन जानवरों के साथ खेलने-कूदने में बीता।आज 12:30 से 3:30 के बीच, पृथ्वी के पास से खतरनाक कॉस्मिक-रे गुजरेंगी, जो कर सकती है पूरी दुनिया ख़त्म
हाई स्कूल पास करने के बाद राजेंद्र ने ‘भारतीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक महाविद्यालय’ से आयुर्विज्ञान में डिग्री हासिल की। उनका यह संस्थान वागपत, उत्तर प्रदेश में स्थित था। उसके बाद राजेंद्र सिंह ने जनता की सेवा के भाव से गाँव में प्रेक्टिस करने का इरादा किया। साथ ही उन्हें जयप्रकाश नारायण की पुकार पर राजनीति का जोश चढ़ा और वे छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथ जुड़ गए। छात्र बनने के लिए उन्होंने बड़ौत में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध एक कॉलेज में एम।ए। हिंदी में प्रवेश ले लिया।
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राजेंद्र सिंह की जिंदगी उस वक्त बदल गई जब उनकी मुलाकात गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़े रमेश शर्मा से हुई। रमेश शर्मा के सुधार कार्यों को देख वह बेहद प्रभावित हुए। पढ़ाई पूरी करने के बाद ही उन्हें साल 1980 में सरकारी नौकरी मिल गई। नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने ठान लिया था कि राजस्थान में पानी के इस विकट संकट के निपटारे के लिए वह प्रयास करेंगे। उन्होंने भूजल स्तर बढ़ाने के लिए और बारिश के पानी को धरती के तह तक लाने के लिए प्राचीन भारतीय प्रणाली को ही आधुनिक तरीके से अपनाया। इसके लिए उन्होंने स्थानीय लोगों यानी गांव वालों की ही मदद ली और जगह-जगह छोटे-छोटे पोखर तालाब बनाने शुरू किए।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा राजेंद्र सिंह के इस प्रयास के कारण जल संचय के जरिए साढ़े छह हजार से ज्यादा जोहड़ों का निर्माण हो चुका है और राजस्थान कि करीब एक हजार गांव में फिर से पानी उपलब्ध हो चुका है। यह किसी चमत्कार और बहुत बड़ी उपलब्धि से कम नहीं और यह सब कुछ बस ऐसे ही नहीं हो गया इसके पीछे राजेंद्र सिंह के साथ काफी लोगों का प्रयास और संघर्ष जुड़ा हुआ है। यही नहीं राजेंद्र सिंह ने अपने इस प्रयास से राजस्थान के अलवर शहर की पूरी तस्वीर ही बदल कर रख दी। गर्मियों में यहां पानी की इतनी किल्लत होती थी की लोग बूंद बूंद पानी को तरसते थे वहां आज पानी की कोई समस्या नहीं है।