New Delhi: तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर से 20 किलोमीटर तथा चौरी-चौरा से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। तरकुलहा देवी मंदिर हिन्दू भक्तों के लिए प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह स्थानीय लोगों की कुल देवी भी है। इसी वजह से तरकुलहा देवी मंदिर महत्व और भी ज्यादा है।
इस मंदिर का निर्माण डुमरी के क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह के पूर्वजों ने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से भी पहले एक तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर दी थी। ऐसी मान्यता है कि मां महाकाली के रूप में यहां विराजमान जगराता माता तरकुलही पिंडी के रूप में विराजमान हैं।
तरकुलहा देवी मंदिर में चढ़ाई जाती थी अंग्रेज सैनिकों की बलि
अंग्रेजों का बिहार और देवरिया जाने का मुख्य मार्ग शत्रुघ्नपुर के जंगल से ही होकर जाता था। जंगल के ही समीप डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह गुरिल्ला युद्ध नीति में निपुण थे। बाबू बंधू सिंह अंग्रज़ों के ज़ुल्म से आहत और आक्रोशित थे। लोगों के अनुसार क्रांतिकारी बंधू सिंह की जब भी गुरिल्ला युद्ध के दौरान अंग्रेजों से मुठभेड़ होती थी, तब वह उनको मारकर शत्रुघ्नपुर के जंगल में स्थित पिंडी पर ही उनका सिर देवी मां को समर्पित कर देते थे।
एक मई 1833 को चौरी-चौरा डुमरी रियासत में जन्मे बाबू सिंह इस कार्य को इतनी चालकी से करते थे कि काफी समय तक अंग्रेजों को अपने सिपाहियों के गायब होने का राज समझ में नही आया, लेकिन एक के बाद एक सिपाहियों के गायब होने की वजह से उन्हें शक़ हुआ जो जिला कलेक्टर के मृत्यु के बाद यकीन में बदल गया। इस पर अंग्रेजों ने बंधू की डुमरी खास की हवेली को जला दिया। यहां तक कि उनकी हर एक चीज का नामोनिशान मिटाने का प्रयास किया गया। इस लड़ाई में बंधू सिंह के पांच भाई अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।
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