पश्चिमी और बाहरी दिल्ली के 21 जलस्रोतों को मिलेगा पुनर्जीवन

लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने पश्चिमी और बाहरी दिल्ली के 21 जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने की योजना बनाई है। इसका मकसद केवल सौंदर्यीकरण भर नहीं बल्कि प्राकृतिक संसाधन के रूप में उपयोग कर बाढ़ नियंत्रण और जलभराव से मुक्ति भी दिलाना है।

योजना के तहत जलस्रोतों को तीन बड़े उप-बेसिन अलीपुर, नजफगढ़ और कंझावला में बांटा गया है। साथ ही, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने के लिए विशेषज्ञ सलाहकारों को लगाया गया जिन्होंने नजफगढ़ बेसिन की गहन जांच के दौरान 21 तालाब और झीलें चिह्नित कीं। इनमें से 14 जलस्रोत दिल्ली पार्क्स एंड गार्डन सोसाइटी के अधीन हैं जबकि बाकी डीडीए, दिल्ली जल बोर्ड और अन्य एजेंसियों के पास हैं। अधिकारियों का मानना है कि ये जलस्रोत पानी रोकने और संग्रह करने की बड़ी क्षमता रखते हैं जिससे आसपास के इलाकों में जलभराव और बाढ़ जैसी समस्या काफी हद तक रोकी जा सकेगी।

अधिकारियों ने बताया कि भलस्वा झील को पुनर्जीवन का पहला केंद्र चुना गया है। इस झील की हालत बेहद खराब है। आसपास की डेयरी कॉलोनी से निकलने वाला गोबर और ठोस कचरा यहां पानी को दूषित कर रहा है। अब इसे संवारने के लिए डी-सिल्टिंग, प्रदूषक हटाने, तटबंध मजबूत करने, पौधरोपण, वॉकिंग ट्रैक और बाउंड्री वॉल बनाने जैसे कदम उठाए जाएंगे।

साथ ही, गोबर निपटान के लिए अलग स्थान बनाया जाएगा ताकि झील दोबारा प्रदूषित न हो। योजना का मकसद केवल तालाबों को चमकाना नहीं बल्कि उन्हें दिल्ली के जल चक्र से जोड़ना है। इन जलस्रोतों को पानी की नालियों से इंटरलिंक किया जाएगा ताकि बारिश का अतिरिक्त पानी यहां जमा होकर भूजल रिचार्ज कर सके। विशेषज्ञों का कहना है कि यह पहल दिल्ली के लिए स्थायी जल प्रबंधन की दिशा में बड़ा कदम होगी। बवाना, मयापुरी, नरेला और धीरपुर के तालाबों को भी पुनर्जीवित कर आसपास की आबादी को जलभराव की समस्या से राहत मिलेगी।

हरियाली को दिया जाएगा बढ़ावा
परियोजना के तहत सिर्फ पानी रोकने की व्यवस्था ही नहीं बल्कि लोगों को प्रकृति से जोड़ने का भी ख्याल रखा जाएगा। पार्क, कुदरती ट्रेल, मछली पालन, बोटिंग जैसी गतिविधियां विकसित करने की योजना है। 27 जगहों पर पार्क और तालाब विकसित करने की रूपरेखा भी तय की गई है। इससे स्थानीय लोगों को मनोरंजन के साथ-साथ पर्यावरणीय संतुलन का लाभ मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले तीन दशकों में तेजी से हुए शहरी विस्तार ने राजधानी की प्राकृतिक जल प्रणालियों को काफी खराब किया है। जहां कभी तालाब और नाले थे वहां अब कंक्रीट की बस्तियां और सड़कें हैं। नतीजतन, हर बारिश में राजधानी डूबने लगती है।

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