सरकार गेहूं की जमाखोरी रोकने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है, ताकि कीमतों को बेकाबू होने से रोका जा सके। यही वजह है कि सरकार ने थोक विक्रेताओं और प्रोसेसिंग करने वालों के लिए नियमों को और भी ज्यादा सख्त कर दिया है।
खाद्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के निरंतर प्रयासों के तहत, केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2025 तक लागू गेहूं की स्टॉक सीमा को संशोधित करने का फैसला किया है।”
अब कितना स्टॉक रख सकेंगे विक्रेता
संशोधित मानदंडों के अनुसार, थोक विक्रेताओं को अब 2,000 टन के बजाय 1,000 टन तक गेहूं का स्टॉक रखने की अनुमति है। वहीं खुदरा विक्रेता प्रत्येक आउटलेट के लिए 10 टन के बजाय 5 टन रख सकते हैं। यही लिमिट बड़ी चेन के खुदरा विक्रेताओं के लिए भी है।
गेहूं से ब्रेड और बिस्कुट जैसी खाने-पीने का सामान बनाने वाले प्रसंस्करणकर्ताओं के लिए भी नियम सख्त हुए हैं। वे अप्रैल 2025 तक शेष महीनों से गुणा करके अपनी मासिक स्थापित क्षमता का 60 प्रतिशत के बजाय 50 प्रतिशत रख सकते हैं।
गेहूं पर कब लगी थी स्टॉक लिमिट
गेहूं पर स्टॉक सीमा पहली बार 24 जून को लगाई गई थी। इसके बाद समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने और जमाखोरी और सट्टेबाजी को रोकने के लिए 9 सितंबर को मानदंडों को कड़ा करने के लिए संशोधित किया गया था।
मंत्रालय ने कहा कि सभी गेहूं स्टॉकिंग संस्थाओं को गेहूं स्टॉक सीमा पोर्टल (https://evegoils.nic.in/wsp/login) पर पंजीकरण करना होगा। उन्हें और हर शुक्रवार को स्टॉक की स्थिति को अपडेट करना जरूरी है।
लिमिट से ज्यादा स्टॉक है तो?
अगर संस्थाओं के पास स्टॉक तय सीमा से अधिक है, तो उन्हें अधिसूचना जारी होने के 15 दिनों के भीतर मात्रा को निर्धारित स्टॉक लिमिट के भीतर लाना होगा। कोई भी संस्था जो पोर्टल पर पंजीकृत नहीं पाई जाती है या स्टॉक सीमा का उल्लंघन करती है, उस पर आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत उपयुक्त दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
खाद्य मंत्रालय कीमतों को नियंत्रित करने और देश में आसान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं की स्टॉक स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है। यह बंदिश गेहूं की नई फसल आने तक जारी रहने का अनुमान है। लिमिट हटाने के लिए भी सरकार यह देखेगी कि गेहूं का उत्पादन कितना रहता है।