योगी के दलित के घर भोजन करने से बढ़ी सियासी हलचल, घबराईं मायावती

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर में दलितों के संग सहभोज को बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा राजनीतिक नाटकबाजी और सियासी लाभ लेने की कोशिश बताना अप्रत्याशित नहीं है। इसके पीछे प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक समीकरण और वोटों की गणित है।
योगी के दलित के घर भोजन करने से बढ़ी सियासी हलचल, घबराईं मायावती
 
यही वजह है कि सीएम के दलितों के संग भोजन करने से मायावती बेचैन हैं। उनकी कोशिश है कि भाजपा के ऐसे सहभोज के जरिये दिए जा रहे संदेश पर रोक लगे। इसीलिए उन्होंने यह भी जोड़ा कि भाजपा के इन दिखावटी कामों से दलितों और पिछड़ों को बरगलाया नहीं जा सकता।

लड़की बार बार माफ़ी मांगती रही पर दरिंदों को रहम नहीं आयी.

भाजपा के रणनीतिकार भी शायद इस बात को समझ रहे हैं। तभी तो वह भी इस मुद्दे पर चुप बैठने के बजाय एजेंडे को और धार देने की तैयारी में हैं। एक कार्यक्रम के सिलसिले में दो दिन पहले गोरखपुर गए सीएम ने कैंपियर गंज के हरनामपुर में अंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया और दलितों के साथ सहभोज में शामिल हुए थे।

दरअसल, बसपा की राजनीतिक ताकत का मुख्य आधार प्रदेश की 24 फीसदी दलित आबादी है। इसी आधार पर बसपा कभी अगड़ों-पिछड़ों तो कभी पिछड़ो-मुसलमानों का समीकरण बनाकर चुनाव जीतती रही।

मोदी के सक्रिय होते ही खिसकने लगा बसपा का आधार

लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी के भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने के बाद जिस तरह अति पिछड़ा व गैर जाटव दलित वोटरों को उनके साथ लामबंद करने की कोशिश हुई।

उससे बसपा का आधार वोट खिसकना शुरू हो गया। इसके चलते लोकसभा चुनाव में बसपा को प्रदेश में एक भी सीट नहीं मिली। लोकसभा की प्रदेश में 80 सीटों में 17 अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं। ये सीटें भी भाजपा के खाते में गई।

विधानसभा चुनाव में भी सफल
लोकसभा चुनाव में बने समीकरणों पर विधानसभा चुनाव में मिली जीत ने भाजपा के रणनीतिकारों को इतना उत्साहित कर दिया कि उन्होंने लगातार इन पर ध्यान दिया और काम किया। डॉ. भीमराव अंबेडकर से जुड़े स्थानों पर तो काम करने के साथ ही दलितों को रोजगार व स्वरोजगार देने के लिए केंद्र सरकार योजनाएं लेकर आई।

भगवा टोली के कई संगठनों की तरफ से दलित वर्ग की बस्तियों में समरसता कार्यक्रम और सह भोज हुए। इनमें भाजपा का कोई न कोई नेता शामिल हुआ। परदे के पीछे रहते हुए विधानसभा के 300 से ज्यादा क्षेत्रों से धम्म चेतना यात्रा निकालकर भी दलितों को जोड़ने की कोशिश हुई जो सफल रहा। विधानसभा चुनाव में सुरक्षित 86 सीटों में 76 भाजपा के खाते में गई। बसपा को सिर्फ 19 सीटें ही मिलीं।

यह भी है बेचेनी की वजह

भाजपा नेताओं की तरफ से इस समय पूरे देश में दौरे के समय किसी दलित और अति पिछड़े परिवार या समुदाय के साथ भोजन करने का चलन चल रहा है। प्रदेश के ज्यादातर मंत्री बिहार दौरे पर इस तरह के कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं।

परिवहन राज्यमंत्री स्वतंत्र देव सिंह तो शुक्रवार को ही बिहार के खगड़िया जिले की महामलिन बस्ती में दलितों के साथ सहभोज किया। दलितों और अति पिछड़ों के बीच भाजपाइयों की बढ़ रही सक्रियता ही मायावती को बेचैन कर रही है।

उन्हें पता है कि जब तक उनका आधार वोट साथ नहीं आएगा तब तक उनकी ताकत बढ़ने वाली नहीं है। लेकिन जिस तरह भाजपा सक्रिय है, उससे मायावती को सियासी मुश्किलें और बढ़ रही हैं।

पिछले दिनों उनका सहारनपुर जाकर शब्बीरपुर घटना के बहाने भाजपा पर निशाना साधना और अब मुख्यमंत्री के दलितों के संग भोजन के बहाने भाजपा पर हमला इसका प्रमाण है। इससे उनका आधार वोट कितना वापस होगा, यह तो आगे पता चलेगा। लेकिन यह साफ हो गया है कि मायावती दलित वोट छिटकने से कितना परेशान हैं।

मुहिम आगे बढ़ाने में जुटी भाजपा

भाजपा दलित और अति पिछड़ों के वोटों की लामबंदी को और आगे बढ़ने की तैयारी में जुट गई है। इस क्रम में दलित वर्ग के सम्मेलन, इस वर्ग के मेधावियों का सम्मान और इनके सरोकारों से जुड़े कार्यक्रम के साथ सहभोजों की योजना बनी है।

तय किया गया है कि मुख्यमंत्री ही नहीं, अन्य मंत्री और भाजपा नेता भी जिलों में कार्यक्रमों में जाएं तो दलित व अति पिछड़ों के घर या उनके संग भोजन का कार्यक्रम रखें। प्रदेश उपाध्यक्ष बाबूराम निषाद कहते हैं कि मायावती सामाजिक समरसता कायम नहीं होने देना चाहती। वे दलितों-पिछड़ों को दबाकर रखना चाहती है।

दलित यह जान चुका है कि मायावती उनकी ताकत पर अभी तक अपने स्वार्थ की राजनीति करती रही हैं। इसीलिए वह उनसे दूर हटा है। आरएसएस, जनसंघ और भाजपा आज से नहीं काफी पहले से दलितों के हितों की चिंता करती रही है।

इसीलिए मायावती की असलियत सामने आने के बाद वह भाजपा की तरफ फिर लौट आया है। मायावती कुछ कहें, लेकिन दलित और पिछडे़ अब उनके भुलावे में नहीं आने वाले।

 

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