पंजाब: भूजल में यूरेनियम के लिए नए मानकों के अनुसार दोआबा और माझा की रिपोर्ट तलब

2010 में मोहाली निवासी बृजेंदर सिंह लुंबा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए मालवा क्षेत्र के भूजल में यूरेनियम होने और इससे बढ़ते कैंसर के मामलों का मुद्दा उठाया था।

पंजाब के मालवा और खास तौर पर बठिंडा के भूजल में यूरेनियम होने व बढ़ते कैंसर के मामलों को लेकर 14 साल से लंबित याचिका पर हाईकोर्ट ने एहतियातन दोआबा और माझा के सभी जिलों से भूजल के नमूने लेकर नए सिरे से जांच का आदेश दिया है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से 1 लीटर पानी में 30 माइक्रो ग्राम यूरेनियम को सुरक्षित माना गया है और इसी मानक के अनुसार दोनों क्षेत्रों के सभी जिलों के सैंपल की जांच कर सरकार को रिपोर्ट देनी होगी।

2010 में मोहाली निवासी बृजेंदर सिंह लुंबा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए मालवा क्षेत्र के भूजल में यूरेनियम होने और इससे बढ़ते कैंसर के मामलों का मुद्दा उठाया था। हाईकोर्ट को बताया गया था कि इस क्षेत्र में कैंसर के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन सरकार लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध करवाने की दिशा में कोई काम नहीं कर रही है। हाईकोर्ट के आदेश पर मालवा क्षेत्र के पानी में यूरेनियम की जांच के लिए भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) ने बठिंडा, फिरोजपुर, फरीदकोट और मानसा से 1500 पानी के नमूने लिए थे।

इनमें से 35 फीसदी नमूनों में यूरेनियम तय मानकों से अधिक पाया गया, जिसमें बठिंडा जिला सबसे अधिक प्रभावित पाया गया है। एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड के अनुसार पीने के पानी में यूरेनियम की मात्रा 60 पीपीबी से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन बठिंडा जिले के पानी में यह मात्रा 10 गुना से अधिक 684 पीपीबी आकी गई थी। ऐसे में इस पानी को पीने के लिए ठीक नहीं माना गया था। इसके बाद से ही लगातार हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई हो रही थी और सरकार लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी दे रही थी।

इस मामले में अदालत का सहयोग कर रहे सीनियर एडवोकेट रुपिंदर सिंह खोसला ने हाईकोर्ट को बताया कि पीने के पानी में यूरेनियम की समस्या की जांच अभी तक केवल मालवा तक सीमित रखी गई है। बाकी के दो क्षेत्रों में भी इसकी जांच करवाई जानी चाहिए। भूजल एक समस्या है, लेकिन हमें समाधान या विकल्प पर विचार करना चाहिए। नदियों व झीलों में मौजूद पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है। बठिंडा कंटोनमेंट में भी भाखड़ा से ही पानी की सप्लाई हो रही है। ऐसे में अन्य स्थानों पर भी नदियों व झीलों से पीने के पानी की व्यवस्था के विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए।

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