सुरजीत पातर की हर रचना हमें भाषा, संस्कृति एवं विरासत से जोड़ कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। वह एक प्यारे इंसान भी थे और आज के दिन में पंजाबी के सबसे बड़े शायर भी। अमृता प्रीतम, मोहन सिंह और हरभजन सिंह के बाद वह इकलौते इंसान थे, जिन्होंने पंजाब के काव्य युग को अपने कंधों पर उठाया हुआ था।
पंजाब ने आज एक आइकन खो दिया है। सुरजीत पातर पंजाबी साहित्य की फुलवारी का खिलखिलाता और महकता फूल था, हमें छोड़कर चला गया। हमारा जो पंजाबी साहित्य का युग है न! वह पहले भाई वीर सिंह, पूरन सिंह और शिवकुमार बटालवी का था।
उसके बाद का जो मॉडर्न युग है, वह शुरू हुआ है- अमृता प्रीतम, मोहन सिंह, हरभजन सिंह और उसके बाद सुरजीत पातर से। पातर पंजाबी साहित्य जगत के मील के पत्थर थे। वह मुझसे उम्र में लगभग 10 साल छोटे थे। मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि वह अब कभी लौट कर नहीं आएंगे। वह तो इतने काम कर रहे थे और कविता लिख रहे थे, कि मैं दंग रह जाती थी। हम सात देश और आठ मुल्क मिलकर साहित्यिक कार्यक्रम करते हैं। अब तक 68 कार्यक्रम हम कर चुके हैं। हर कार्यक्रम में सुरजीत पातर का होना लाजमी था।
पिछले दिनों जब वह आए तो मैंने कहा “पातर तू मेरे पास बैठता ही नहीं है। बस…अपनी कविता पढ़ी और निकल गए।” तो सुरजीत ने हंस कर जवाब दिया था, “मैं आपको क्वालिटी टाइम देता हूं। तो आपको मेरे क्वांटिटी टाइम से क्या करना है? मेरा जो सबसे बेस्ट टाइम है और कविताएं हैं, वह मैं आपके कार्यक्रम में आकर सुनाता हूं।”
जितना लिखा, सब प्यारा
अभी भी मेरे कानों में उसके ये लफ्ज गूंज रहें हैं और मैं सोच-सोचकर रो रही हूं कि ये क्या हो गया। सुरजीत पातर ने जितना भी लिखा, सब प्यारा है। पातर की काव्य रचनाओं में ‘हवा विच लिखे हर्फ’, ‘हनेरे विच सुलगदी वरनमाला’, ‘पतझर दी पाजेब’, ‘लफजान दी दरगाह’ और ‘सुरजमीन’ मुझे एक ‘कमाल’ ही लगता है। पातर ने फेडेरिको गार्सिया लोर्का की तीन त्रासदियों, गिरीश कर्नाड के नाटक नागमंडला और बर्टोल्ट ब्रेख्त और पाब्लो नेरुदा की कविताओं का पंजाबी में अनुवाद भी किया था।
गुरु नानक वाणी और लोककथाओं के रिश्ते पर उन्होंने पीएचडी की थी। उनका रिसर्च पेपर हम सबको पढ़ना चाहिए। उनकी हर रचना हमें भाषा, संस्कृति एवं विरासत से जोड़ कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। वह एक प्यारे इंसान भी थे और आज के दिन में पंजाबी के सबसे बड़े शायर भी। अमृता प्रीतम, मोहन सिंह और हरभजन सिंह के बाद वह इकलौते इंसान थे, जिन्होंने पंजाब के काव्य युग को अपने कंधों पर उठाया हुआ था और अब वो कंधा भी नहीं रहा। पातर प्यारे…याद आते रहोगे!
-अजीत कौर (लेखिका पंजाबी की मशहूर साहित्यकार हैं।)