क्रिसमस के दिन चीन की मिलिट्री एक्सरसाइज के बाद ताइवान अलर्ट हो गया है। इसके बाद ताइवान ने अपने देशवासियों के लिए एक खास ऐलान किया है। इसके तहत अब ताइवान में हर नागरिक के लिए एक साल की मिलिट्री ट्रेनिंग लेना अनिवार्य होगा। अभी तक यह समय सीमा केवल चार महीने की थी। यह शर्त साल 2024 से लागू होगी। ताइवान ने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि अगर चीन के साथ किसी तरह की टकराव की नौबत आती है तो फिर उसकी आर्मी मजबूत स्थिति में रहे।
चीनी राष्ट्रपति ने कही यह बात
ताइवान के राष्ट्रपति साइ इंग वेन मंगलवार को इस बारे में एक प्रेस कांफ्रेंस की। इसमें उन्होंने कहा कि चीन से बढ़ते खतरे को देखते हुए देश को पूरी तरह से तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह से हालात लगातार बदल रहे हैं, उसको देखते हुए केवल चार महीने की अनिवार्य मिलिट्री ट्रेनिंग पर्याप्त नहीं है। वेन के मुताबिक यही वजह है कि 2024 से एक साल की मिलिट्री ट्रेनिंग लागू की जा रही है। ताइवान में चीन के साथ सिविल वॉर के बाद से 1949 में अनिवार्य मिलिट्री सेवा का नियम है। इसके तहत 18 साल से ऊपर के सभी पुरुषों को दो से तीन साल मिलिट्री में बिताने होते हैं। हालांकि साल 1996 के बाद इसमें कमी कर दी गई थी। साल 2008 में यह एक साल किया गया और फिर 2018 में और कम करके चार महीने किया गया था।
इसलिए बढ़ाई जा रही मिलिट्री सर्विस
गौरतलब है कि रविवार को चीन ने ताइवान की समुद्री सीमा पर 47 एयरक्राफ्ट भेजे थे। हालिया समय में ताइवानी एयर डिफेंस जोन में यह चीन का सबसे बड़ा अतिक्रमण है। गौरतलब है कि चीन लगातार एकीकरण की बातें करता रहता है। बीते दिनों अमेरिकी राजनेता नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन पूरी तरह से बौखला गया था। इसके कुछ ही दिनों के बाद अमेरिकी राजनयिकों का एक दल भी ताइवान पहुंचा था, जिसके बाद चीन ने अमेरिका को हद में रहने की चेतावनी तक दे डाली थी।
चीन से दस गुना कम है मिलिट्री ताकत
ताइवान के पास फिलहाल 170,000 सैन्य जवान हैं, जो कि चीन से दस गुना कम हैं। अनुमान है कि ताइवान में हर साल एक लाख पुरुष 18 साल के हो जानते हैं। इस तरह अनिवार्य मिलिट्री सेवा के जरिए चीन अपनी सेना में जवानों की संख्या बढ़ाता जाएगा। खास बात यह भी है कि एक साल की अनिवार्य मिलिट्री सेवा लागू करने के लिए नियमों में भी किसी तरह का बदलाव नहीं करना पड़ेगा। गौरतलब है कि पिछले दो साल से ही मिनिस्ट्री ऑफ नेशनल डिफेंस और नेशननल सिक्योरिटी काउंसिल में इस मामले पर विचार चल रहा था।