उत्तराखंड की जेलों से 84 कैदी बीते डेढ़ साल से गुमशुदा हैं। इनमें से कई पर दोष अंतिम तौर पर साबित हो चुका है, इन्हें कोविड की दूसरी लहर के दौरान छोड़ा गया था, लेकिन इसके बाद इनकी कोई खबर नहीं मिल पाई है। इससे जेल और खुफिया विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं।
कोविड की दूसरी मारक लहर के दौरान भीड़ भरे स्थलों पर सामाजिक दूरी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2021 में देश की सभी जेलों से ऐसे कैदियों को भी रिहा करने को कहा था, जिन्हें सात साल से कम की सजा हुई है, या जिसमें सात साल से कम सजा हो सकती है। जघन्य और आर्थिक अपराध में बंद कैदियों को इसमें शामिल नहीं किया गया था।
नब्बे दिन के लिए की थी रिहाईसुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तराखंड की विभिन्न जेलों से कुल 198 कैदियों को पहले तीस दिन के निजी बांड पर रिहा किया गया। कोर्ट ने इसके बाद उक्त अवधि दो और बार आगे बढ़ाई, यानि कैदियों को कुल 90 दिन की रिहाई मिली थी।
इसके बाद उन्हें खुद वापस आना था। लेकिन इसमें से 84 कैदी अब तक वापस नहीं लौट पाए हैं। जबकि शेष अलग – अलग समय अवधि के बाद लौट आए हैं। सूत्रों के अनुसार इसमें से अधिकांश कैदी अब अपने पते पर नहीं मिल रहे हैं। जबकि इनमें से कुछ तो सिद्धदोष बंदी हैं, इस कारण यह मामला गृह विभाग के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।
रिहाई के डेढ़ साल बाद तक जेल विभाग से लेकर स्थानीय पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों को इनकी भनक नहीं लग पा रही है। इस बारे में सम्पर्क करने पर अपर सचिव गृह अतर सिंह ने बताया कि उस समय कोर्ट के आदेश पर कैदियों को छोड़ा तो गया था, लेकिन इसके बाद कितने कैदी वापस नहीं आए इसकी रिपोर्ट जेल मुख्यालय ने नहीं दी है। इस बारे में जल्द रिपोर्ट तलब की जाएगी।
कहां गए कैदी किसी को खबर नहीं
सूत्रों के अनुसार इसमें ज्यादातर कैदी ऐसे थे जिन्हें कोर्ट से अंतिम तौर पर दोषी पाए जाते हुए सजा सुनाई जा चुकी है। कुछ की अभी दो से तीन साल तक की जेल अवधि बची हुई है। लेकिन कोविड के दौरान मानवीय आधार पर मिली राहत का लाभ उठाते हुए अब वो कानून के शिकंजे से दूर हो गए हैं। जेल विभाग या प्रशासन के द्वारा इस मामले को बेहद हल्के में लिया गया।