धर्म: भगवान शंकर के धामों में एक अद्भुत शक्ति है, इनके किसी भी धाम में दर्शन करने वाला व्यक्ति खुद को धन्य मानने लगता है. भारतीय संस्कृति की सुप्रसिद्ध तीर्थ यात्राओं में बाबा अमरनाथ की यात्रा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. बाबा अमरनाथ की यात्रा न केवल यात्रा है, बल्कि तात्विक रूप से कहा जाए तो यह एक जीवन यात्रा है. मरणशीलता से अमरत्व की यात्रा, जीव से शिव यात्रा, संघर्ष से सफलता की यात्रा, जड़ता से चेतना की यात्रा है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, नारद जी ने मां पार्वती को जब यह बताया कि उनके पति भगवान भोलेनाथ, अजर-अमर हैं तथा कई बार जन्म ले चुके हैं तो मां पार्वती ने भगवान शिव से इस रहस्य को जानने की इच्छा प्रकट की. तब भगवान शंकर ने कहा, ‘देवी मैं अमर कथा को जानता हूं, इसलिए अमर हूं’. यह सुनकर माता पार्वती ने अमर कथा सुनने का आग्रह किया.
भगवान शिव बोले, ‘देवी यह कथा अत्यंत पवित्र गुफा में और एकांत स्थान पर सुनाऊंगा. इस कथा को त्यागपूर्वक बिना आलस्यपूर्वक सुनना होगा’. तब भगवती बोलीं, ‘अमर कथा को सुनने के लिए जितने त्याग की आवश्यकता होगी, मैं करुंगी, क्योंकि मन को जिसकी अभिलाषा होती है, उस कार्य की सिद्धि बिना त्याग एवं समर्पण के नहीं हो सकती. यह सुन भगवान शिव अमरनाथ की पवित्र गुफा की ओर प्रस्थान करते हैं और पहलग्राम नामक स्थान में नंदी जी को रोकते हैं. आगे बढ़ते हुए चंदनबाड़ी नामक स्थान पर चंद्रमा को छोड़ देते हैं.
शेषनाग नामक स्थान पर शेषनाग को छोड़ देते हैं, उसके आगे श्री गणेश जी को स्थापित करते हुए उन्हें यह जिम्मेदारी देते हैं कि कथा के मध्य में कोई प्रवेश न कर सके. तदन्तर पंचतरणी पर गंगा जी को छोड़कर पवित्र गुफा में जाकर मृगछाला बिछाकर कथा प्रारंभ करते हैं. भगवान कथा सुना रहे हैं, भगवती सुन रही हैं, उनके साथ-साथ शुक्र के अंडे में बैठा हुआ शुक्र भी कथा सुन रहा है. भगवान शिव ने माता पार्वती को जो कथा सुनाई, वह कथा श्रीमद्भगवत महापुराण की कथा है, जिसे सुनते-सुनते भगवती को बीच में नींद आ गई, लेकिन शुक्रदेव जी महाराज पूरी कथा सुन चुके थे. वस्तुतः शिव जी ने जो कथा सुनाई. वह कथा ज्ञान, भक्ति एवं वैराग्य की कथा है. तत्वरुप से अमरनाथ की यात्रा का मुख्य संदेश ज्ञान, भक्ति एवं वैराग्य की प्राप्ति है.
संसार में मनुष्य का आगमन धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति करने के लिए होता है. मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह मानव शरीर विभिन्न प्रकार के उपक्रम करता है. उन्हीं उपक्रमों से एक अनूठा उपक्रम है बाबा अमरनाथ के दर्शन. सही मायने में इस दर्शन का फल व्यक्ति को तब प्राप्त होता है, जब मनुष्य में ज्ञान, भक्ति एवं वैराग्य का उदय हो जाता है. जब तक व्यक्ति के अंदर सहजता नहीं आ जाती, तब तक दर्शन का फल प्राप्त नहीं होता. सहजता का मतलब छल, कपट, आडंबर, द्वेष, ईर्ष्या इत्यादि का नहीं होना. यदि मन में निर्मलता आ गई हो तो समझो उसकी यात्रा का मुख्य उद्धेश्य पूर्ण हो गया है.
कबीरदास जी तो कहते हैं कि जब मन में निर्मलता आ जाती है तो उसे कहीं जाना ही नहीं पड़ता है, अपितु परमात्मा स्वयं उसके पास आ जाते हैं- ‘कबिरा मन निर्मल भया ज्यों गंगा का नीर.. पाटे-पाटे हरि चलें कहत कबीर कबीर’.. अपने कर्तव्य कर्मों का निर्वहन कर व्यक्ति जीवन के परम एवं चरम उद्धेश्य को प्राप्त कर सकता है, लेकिन यह डगर उतनी ही कठिन है, जितनी अमरनाथ की यात्रा. मार्ग में न जाने कितने वन, पर्वत, खाइयां पड़ती है उनको बड़े विवेक से पार करना होगा, नहीं तो बिना सोचे समझे किसी भी चीज का अनुकरण व्यक्ति को सफलता प्रदान नहीं करता है.