CGST के रिफंड के मामले को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि CGST कानून और नियमों के तहत इस्तेमाल नहीं किए गए इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के रिफंड के मामले में वस्तुओं और सेवाओं को समान नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि ‘रिफंड’ मांगना कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है बल्कि यह विधि के तहत संचालित है। शीर्ष अदालत ने केंद्रीय माल एवं सेवा कर (CGST) कानून की धारा 54 (3) की वैधता को बरकरार रखा। यह धारा उपयोग में नहीं आये आईटीसी की वापसी से जुड़ी है। जानकारों का कहना है कि इससे रिफंड के मुद्दे सुलझाने में मदद मिलेगी।
कोर्ट ने कहा कि अदालत को कर की दर, रियायात और छूट जैसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि यह संसद के अधिकार क्षेत्र के विषय हैं। अगर ऐसा होता है तो इससे विधायी विकल्पों के साथ नीतिगत निर्णयों के मामले में अतिक्रमण होगा जो कार्यपालिका का विशेषाधिकार है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायाधीश एमआर शाह की पीठ ने इस मामले से जुड़े गुजरात और मद्रास उच्च न्यायालयों के परस्पर विरोधी निर्णयों पर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय सुनाया। दोनों हाईकोर्ट ने इस बारे में अलग-अलग निर्णय दिये थे कि क्या CGST के तहत इनपुट टैक्स क्रेडिट की वापसी के नियम वस्तुओं पर और सेवाओं पर समान रूप से लागू होंगे।
शीर्ष अदालत ने गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें उसने केंद्रीय माल एवं सेवा कर (CGST) नियम के नियम 89 (5) को अवैध करार दिया था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने 140 पन्ने के फैसले को लिखते हुए मद्रास उच्च न्यायालय के निष्कर्षों से सहमति व्यक्त की। उच्च न्यायालय ने नियम की वैधता को बरकरार रखा था।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘रिफंड का दावा नियमों से संचालित होता है। रिफंड मांगना कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। संसद ने पहले प्रावधान के खंड (i) में कर भुगतान के बिना शून्य-कर से संबंधित आपूर्ति के मामले में अप्रयुक्त आईटीसी की वापसी की अनुमति दी है। पहले प्रावधान के खंड (ii) के तहत, संसद ने वैसे मामले में अप्रयुक्त आईटीसी की वापसी की परिकल्पना की है, जहां कच्चे माल (इनपुट) पर कर की दर उत्पाद (आउटपुट) आपूर्ति पर कर की दर से अधिक होने के कारण क्रेडिट जमा हुआ है।’’
फैसले में कहा गया है, ‘‘जब रिफंड के लिये न कोई संवैधानिक गारंटी है और न ही कानून में इसका अधिकार हो, ऐसे में यह दलील स्वीकार नहीं की जा सकती कि बिना उपयोग वाले आईटीसी की वापसी के मामले में वस्तुओं और सेवाओं को समान रूप से माना जाना चाहिए।’’ इस संदर्भ में पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए न्यायालय ने कहा कि कराधान के क्षेत्र में शीर्ष अदालत ने फार्मूले की व्याख्या के लिये तभी हस्तक्षेप किया है, जब उसका विश्लेषण सहीं नहीं जान पड़ता है या अव्यवहारिक है।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘हालांकि वर्तमान मामले में, फार्मूला अस्पष्ट प्रकृति या अव्यवहारिक नहीं है और न ही यह बिना उपयोग वाले आईटीसी के संचय पर सीमित धनवापसी देने के विधायिका के इरादे का विरोध करता है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने इस दलील को स्वीकार किया कि फार्मूले में व्यावहारिक प्रभाव के परिणामस्वरूप कुछ विसंगतियां हो सकती हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें ऐसे में मामले में विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप से बचना चाहिए। हालांकि, करदाताओं ने जो विसंगितयां बतायी हैं, हम उसको देखते हुए जीएसटी परिषद से फार्मूले पर पुनर्विचार करते हुये इस सबंध में नीतिगत निर्णय लेने का आग्रह करते हैं।’’