सीबीआई ने सपा सरकार में हुए रिवर फ्रंट घोटाले में सोमवार को बड़ी कार्रवाई शुरू की है। इसकी अलग-अलग टीमों ने सोमवार की सुबह प्रदेश के 13 जिलों में एक साथ छापामारी की। इसी क्रम में गोरखपुर के राप्तीनगर स्थित गणेशपुरम में विधायक राकेश सिंह बघेल के घर भी सीबीआई का छापा पड़ा है। बताया जा रहा है कि विधायक के भाई उस कंस्ट्रक्शन कंपनी से जुड़े हैं जो इस मामले में शामिल है। सीबीआई टीम सुबह नौ बजे के करीब विधायक के आवास पर पहुंची। तबसे लगातार छानबीन जारी है। आवास के बाहर मीडिया का जमावड़ा लगा है।
मिली जानकारी के अनुसार सीबीआई ने प्रदेश के 13 जिलों में 42 ठिकानों पर एक साथ तलाशी अभियान शुरू किया है। अकेले लखनऊ में ही 25 ठिकानों पर छापामारी हो रही है। लखनऊ, गोरखपुर के अलावा अलवर, सीतापुर, रायबरेली, गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ, बुलंदशहर, इटावा, अलीगढ़, एटा, मुरादाबाद, आगरा और कोलकाता में एक साथ छापेमारी की गई है। लखनऊ में सीबीआई पांच बड़े इंजीनियरों की तलाशी ले रही है। 407 करोड़ रुपए के इस घोटाले में सीबीआई ने कई सुपरिंटेंड इंजीनियर और अधिशासी इंजीनियरों के खिलाफ केस दर्ज किया है।
इस मामले में सीबीआई ने सिंचाई विभाग की ओर से लखनऊ के गोमतीनगर थाने में दर्ज कराए गए मुकदमे को आधार बनाकर 30 नवंबर 2017 में नया मुकदमा दर्ज किया था। यह एफआईआर प्रदेश सरकार के निदे्रश पर दर्ज कराई गई थी। मुकदमे में सिंचाई विभाग के तत्कालीन मुख्य अभियंता (अब सेवानिवृत्त) गुलेश चंद, एसएन शर्मा व काजिम अली, तत्कालीन अधीक्षण अभियंता (अब सेवानिवृत्त) शिव मंगल यादव, अखिल रमन, कमलेश्वर सिंह, रूप सिंह यादव और अधिशासी अभियंता सुरेश यादव नामजद हैं। सीबीआई ने सिंचाई विभाग से हासिल पत्रावलियों की जांच करने के अलावा कुछ आरोपियों से पूछताछ भी की।
हो चुकी है न्यायिक जांच
रिवर फ्रंट घोटाले की सीबीआई जांच की संस्तुति करने से पहले यूपी सरकार ने अप्रैल 2017 में इस घोटाले की न्यायिक जांच कराई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में गठित समिति ने जांच में दोषी पाए गए इंजीनियरों और अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराए जाने की संस्तुति की थी। इसके बाद 19 जून 2017 को सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता डॉ. अंबुज द्विवेदी ने गोमतीनगर थाने में धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। बाद में यह जांच सीबीआई को स्थानान्तरित हो गई।
सीबीआई अब इस आरोप की जांच कर रही है कि प्रोजेक्ट के तहत निर्धारित कार्य पूर्ण कराए बगैर ही स्वीकृत बजट की 95 प्रतिशत धनराशि कैसे खर्च हो गई? प्रारंभिक जांच के अनुसार प्रोजेक्ट में मनमाने तरीके से खर्च दिखाकर सरकारी धन की बंदरबांट की गई है। यह प्रोजेक्ट लगभग 1513 करोड़ रुपये का था, जिसमें से 1437 करोड़ रुपये काम खर्च हो जाने के बाद भी 60 फीसदी काम भी पूरा नहीं हो पाया। आरोप यह भी है कि जिस कंपनी को इस काम का ठेका दिया गया था, वह पहले से डिफाल्टर थी।