पश्चिम बंगाल में लगातार तेज और आक्रामक चुनाव अभियान के साथ कोरोना संक्रमण भी तेजी से बढ़ रहा है। राज्य में रोजाना रिकॉर्ड तादाद में नए मरीज सामने आ रहे हैं। चुनाव अभियान के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। नतीजतन अब कलकत्ता हाईकोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा है।
इस मुद्दे पर दायर दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश टी.बी.एन. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जिलाशासकों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव अधिकारी की ओर से तय दिशा-निर्देशों को सख्ती से लागू किया जाए। इसके लिए जरूरत पड़ने पर पुलिस की सहायता ली जा सकती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में चुनाव अभियान के साथ संक्रमण बढ़ने का सीधा संबंध है। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। मार्च के पहले सप्ताह में जब चुनाव अभियान की शुरुआत हुई थी तो दो मार्च को संक्रमण के नए मामलों की संख्या महज 171 थी। 27 मार्च को जिस दिन पहले चरण का मतदान हुआ था, राज्य में 24 घंटों के दौरान 812 नए मामले सामने आए थे और चार लोगों की मौत हुई थी। लेकिन अब यह आंकड़ा साढ़े चार हजार के पार पहुंच गया है। पहली अप्रैल यानी दूसरे चरण के मतदान के दिन यह आंकड़ा 1,274 था जो तीसरे चरण के मतदान के दिन बढ़ कर 2,058 तक पहुंच गया। उसके बाद 10 अप्रैल यानी चौथे चरण के मतदान के दिन 4,043 नए मामले सामने आए थे।
दरअसल, 26 फरवरी को विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान के बाद से ही संक्रमण का ग्राफ लगातार ऊपर चढ़ रहा है। 26 फरवरी को 216 नए मामले सामने आए थे जो 31 मार्च को बढ़कर 931 तक पहुंच गए। इस दौरान पाजिटिविटी रेट भी चार गुना बढ़ गया। कोलकाता नगर निगम में स्वास्थ्य सलाहकार तपन मुखर्जी कहते हैं, “अगर संक्रमण का ग्राफ इसी तरह चढ़ता रहा तो मई में यह कहां पहुंचेगा, यह पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है।
स्वास्थ्य विभाग के महामारी विशेषज्ञ अनिर्वाण दलुई कहते हैं, “बीते साल 24 मई को 208 मामले सामने आए थे। संक्रमितों की संख्या में दस गुनी वृद्धि में तब दो महीने से ज्यादा का समय लगा था। लेकिन अब चार मार्च से चार अप्रैल तक यानी ठीक एक महीने में ही इसमें दस गुनी वृद्धि हुई है। अगर हमने तुरंत इस पर अंकुश लगाने के उपाय नहीं किए तो इस महीने के आखिर तक दैनिक मामलों की संख्या छह से सात हजार तक पहुंचने की आशंका है।”
विशेषज्ञों ने चेताया है कि विधानसभा चुनाव खत्म होने पर बंगाल में कोरोना संक्रमण नया रिकॉर्ड बना सकता है। उनका कहना है कि आठ चरणों तक चलने वाली चुनाव प्रक्रिया कोरोना के लिहाज से भारी साबित हो सकती है। तमाम राजनीतिक दलों की रैलियों और चुनाव अभियान के दौरान न तो कहीं किसी के चेहरे पर मास्क नजर आता है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन हो रहा है।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट बी.एन. चौधरी कहते हैं, “लॉकडाउन नहीं होना, कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन और चुनावी रैलियों में बिना किसी सुरक्षा के बढ़ती भीड़ ही तेजी से बढ़ते संक्रमण की प्रमुख वजहें हैं। आठ चरणों में होने वाले चुनावों की वजह से रोजाना किसी न किसी पार्टी की रैली या सभाएं हो रही हैं। वहां जुटने वाली भीड़ में सामाजिक दूरी का पालन संभव ही नहीं है, ज्यादातर लोग बिना मास्क के होते हैं। ऐसे में अभी दूसरी लहर का चरम आना बाकी है।”
द ज्वाइंट फोरम ऑफ डाक्टर्स—वेस्ट बंगाल नामक डाक्टरों के एक समूह ने चुनाव आयोग को पत्र भेज कर चुनाव अभियान के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल की सरेआम धज्जियां उड़ने पर गहरी चिंता जताते हुए उससे हालात पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने की अपील की है।
इस बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सवाल किया है कि पूरे देश में दोबारा संक्रमण बढ़ रहा है। क्या ऐसी परिस्थिति में तीन या चार चरणों में ही मतदान कराना उचित नहीं होता? लेकिन प्रदेश बीजेपी के महासचिव सायंतन बसु दलील देते हैं कि कोरोना के बीच अगर बिहार में चुनाव हो सकते हैं तो बंगाल में क्यों नहीं?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कुणाल सरकार कहते हैं, “चुनाव आयोग बंगाल में चुनाव अभियान के दौरान कोविड-19 प्रोटोकॉल को लागू करने में नाकाम रहा है। तमाम राजनीतिक दल बिना मास्क पहने सामाजिक दूरी के नियमों का पालन किए बिना हजारों लोगों के साथ रैलियां कर रहे हैं।”
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि चुनाव आयोग को रैलियों और चुनाव अभियान के दौरान लोगों की तादाद तय कर देनी चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो हालात बेकाबू होने का अंदेशा है।
इस मामले में दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने तेजी से बढ़ते संक्रमण पर गहरी चिंता जताई है। हाईकोर्ट ने कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने में नाकाम रहने वाले लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। खंडपीठ का कहना था कि समाज के अन्य सदस्यों के जीवन को खतरे में डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोविड प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाने वालो के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जरूरी है।