ऐसी कई फील्ड है जहां महिलाएं ना सिर्फ पुरुषों के कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं बल्कि उनके आगे पहुंच गई हैं। जबकि दूसरी तरफ आज भी कुछ लोग महिलाओं को सिर्फ चूल्हा-चौंका के योग्य ही समझते हैं। ऐसी ही कुछ कहानी है भारतीय महिला बॉक्सर निखत जरीन, जिनके पिता का मानना था कि “बॉक्सिंग लड़कियों का खेल नहीं”। पिता के यह शब्द निखत के दिल-दिमाग में ऐसे बैठे कि आज वह बेहतरीन प्लेयर बन चुकी हैं।
तेलंगाना के निज़ामाबाद में जन्मी निखत जरीन भारत की इस पूर्व जूनियर बॉक्सिंग चैंपियन है। उन्होंने निजामाबाद के निर्मला हृदया गर्ल्स हाई स्कूल शिक्षा पूरी करने के बाद हैदराबाद के तेलंगाना से बैचलर ऑफ आर्ट्स (बी.ए.) की डिग्री हासिल की।
निखत को बॉक्सिंग में काफी दिलचस्पी थी लेकिन उनके पिता जमील अहमद का मानना था कि बॉक्सिंग महिलाओं का खेल नहीं है, इसे आदमी खेलते हैं। और समाज क्या कहेगा? निखत कहती हैं कि पिता के यह शब्द उनके दिमाग में आज भी गूंजते हैं। पिता के ऐसे शब्द मनोबल तोड़ देते हैं लेकिन निखत ने इसे चैलेंज की तरह लिया और उनके शब्दों को गलत साबित कर दिखाया।
निखत का कहना है कि इस मुकाम को हासिल करने के लिए मैंने बहुत मेहनत की और कई परेशानियों से लड़ी, जिनमें एक ये भी थी कि बॉक्सिंग महिलाओं का खेल नहीं है। मुझे परिवार और लोगों को यह समझाने में काफी वक्त लगा कि लड़कियां भी बॉक्सिंग कर सकती हैं। इससे चेहरा खराब नहीं होगा।
उनका मानना है कि बॉक्सिंग खेलने के लिए पिता के शब्दों से उन्हें बड़ी प्रेरणा मिली। निखत कहती हैं कि मेरे लिए बॉक्सिंग मेरा अभिमान है और इसका लड़का/लड़की से कोई लेना-देना नहीं है। बस आपके अंदर अपनी इच्छा पूरा करने का जुनून होना चाहिए।
2010 में इरोड नेशनल में ‘गोल्डन बेस्ट बॉक्सर’ घोषित किया गया। उन्होंने AIBA महिला युवा और जूनियर विश्व चैंपियनशिप अंताल्या-2011 में गोल्ड मेडल जीता। इसके अलावा वह गुवाहाटी में आयोजित दूसरे इंडिया ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में कांस्य और बैंकॉक में आयोजित 2019 थाईलैंड ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में रजत पदक भी भारत के नाम कर चुकी हैं।
2018 में निखत ने Adidas के साथ ब्रांड एंडोर्समेंट डील साइन की। वहीं उन्हें वेलस्पन समूह (Welspun group) द्वारा समर्थित किया गया है। इसके अलावा उन्हें निजामाबाद का आधिकारिक एम्बेसडर नियुक्त किया गया।