शरद पवार राजनीति के उन धुरंधरों में गिने जाते हैं जिन्हें मौके पर चौका मारना बखूबी आता है. आए भी क्यों न? राजनीति में तो वे स्कूल और कॉलेज के समय से सक्रिय रहे हैं और खेल की दुनिया में भी उनकी प्रशासक के रूप में अच्छी खासी ख्याति है. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल के पूर्व में पवार अध्यक्ष रह चुके हैं. खेल में राजनीति और राजनीति में खेल करने की कला में उनका कोई सानी नहीं है.
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इसी महीने पवार 80 साल के हो गए पर राजनीति में अपनी लंबी पारी को आगे बढ़ाने की लालसा अभी भी बरकरार है. पवार अब पश्चिम बंगाल के हताश और परेशान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए बल्लेबाजी करने के लिए उत्सुक हैं. भारतीय जनता पार्टी के लगातार हमले और दिन प्रतिदिन बढ़ते कद से ममता परेशान हैं. आए दिन उनकी तृणमूल कांग्रेस पार्टी से नेता और कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. बंगाल में बीजेपी मानो ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस विरोधियों का शरणार्थी शिविर बन गया है.
बीजेपी के पास कुछ साल पहले तक बंगाल में झंडा उठाने वाला भी नहीं था, आज बीजेपी वहां सभी को गले लगा रही है. ममता बनर्जी को सभी दीदी पुकारते हैं. ठीक वैसे ही जैसे मायावती को बहुजन समाज पार्टी में सभी बहनजी कहते हैं. ममता बनर्जी की फिलहाल परेशान बढ़ती जा रही है. दीदी को अब पता चल चुका है कि अगर समय रहते उन्होंने कुछ ठोस कदम नहीं उठाए तो उनकी एक दशक से चल रही पारी का अंत हो सकता है. बंगाल में विधानसभा चुनाव अप्रैल-मई के महीने में होने की संभावना है.
शरद पवार दीदी की टीम को मदद देने को तैयार बैठे हैं. खबरों के अनुसार पवार और ममता बनर्जी की शनिवार को फ़ोन पर बात हुई जिसमें पवार ने दीदी को सलाह दी कि बीजेपी के खिलाफ वे क्षेत्रीय दलों का गठबंधन बना कर ही वह चुनाव लड़ें और कोलकाता से उन्हें पॉजिटिव संकेत मिला है. खबर है कि जनवरी के महीने में दीदी दिल्ली के दौरे पर आएंगी और विभिन्न क्षेत्रीय दलों के नेताओं से मुलाकात करेंगी. इसके बाद पवार और दीदी बंगाल में फरवरी में एक साझा रैली करेंगे.
1999 में कांग्रेस पार्टी से अलग हो कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के गठन के बाद से पवार कई बार पश्चिम बंगाल में एनसीपी की किस्मत आजमा चुके हैं पर हर चुनाव में उन्हें निराशा ही हाथ लगी है. अगर देखा जाए तो शरद पवार और ममता बनर्जी को एक दूसरे की जरूरत है. ममता बनर्जी को पवार जैसे धुरंधर की जरूरत है. उन्हें विश्वास है कि पवार अपने साथ कई अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं को भी साथ लाएंगे और जब सभी एक मंच पर दिखेंगे तो उससे तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में माहौल बन सकता है. पवार को दीदी की इसलिए जरूरत है कि दीदी शायद एनसीपी को कुछ टिकट थमा दें और उनकी पार्टी का पूर्वी राज्य में खाता खुल सके.
बंगाल में एनसीपी के साथ भले ही बहुत नेता और कार्यकर्ता न हों, पर पवार को उम्मीद है कि क्षेत्रीय दलों के गठबंधन के बाद एनसीपी में कांग्रेस पार्टी से नेताओं के आने की कतार लग जाएगी. अभी हाल ही में एक खबर चली थी कि सोनिया गांधी की जगह पवार को एनडीए का चेयरमैन बनाया जा सकता है. सोनिया गांधी अस्वस्थ हैं जिसके कारण वह अपनी पार्टी को भी समय देने में असक्षम हैं. पर कांग्रेस पार्टी ने इस प्रस्ताव पर पूर्ण विराम लगा दिया. गांधी परिवार अभी कांग्रेस पार्टी हो या एनडीए, किसी और को कोई अहम पद देना नहीं चाहती, पवार को भी नहीं. कांग्रेस पार्टी की यह बात पवार को कतई चुभी होगी. उन्हें कहीं न कहीं मलाल ही है कि गांधी परिवार के कारण ही वह पूर्व में देश के प्रधानमंत्री बनने से रह गए थे.
कांग्रेस पार्टी ने फैसला किया है कि पश्चिम बंगाल में वह वाम दलों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ेगी. माना जाता है कि यह फैसला राहुल गांधी ने बिना किसी और से सलाह मशविरा किए लिया जिससे पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी के कई नेता असहमत हैं. 24 साल तक लगातार शासन में रहने के बाद 2011 में वाम मोर्चा चुनाव हार गया और अब उसका हौसला पस्त है. कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि यह एक गलत फैसला है जिससे कांग्रेस पार्टी को और भी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
पवार की मंशा है कि वह ममता बनर्जी की कमजोरी का फायदा उठा कर एनसीपी में कांग्रेस पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को आकर्षित कर सकें, ताकि पश्चिम बंगाल में एनसीपी का इस बार खाता खुल जाए और वह कांग्रेस पार्टी से अपमान का बदला भी ले सकें.