डेंगू को लेकर सतर्कता बेहद जरूरी है। इसके लिए शुरू किया गया डेंगू के खिलाफ 10 हफ्ते, 10 मिनट, 10 बजे. अभियान की सफलता एक सुखद एहसास है। इसे जन भागीदारी के साथ एक सकारात्मक बदलाव के रूप में भी देखा जा सकता है। साल दर साल डेंगू के मरीजों की संख्या कम होते जाना और इस साल एक भी मौत न होना अभियान की सफलता की गाथा खुद ब खुद बयां करता है
अगर इरादे नेक हों और लगन सच्ची हो तो छोटे छोटे प्रयास भी बड़ी कामयाबी के कारक बन जाते हैं। निरंतरता के साथ सावधानी बरतने से जिस तरह दिल्लीवासियों ने डेंगू जैसी जानलेवा बीमारी पर काबू पाया, उससे दूसरी समस्याओं के प्रति भी रास्ता निकलता है। आने वाले दिनों में वायु प्रदूषण की समस्या का निदान भी अवश्य निकलेगा, लेकिन यहां यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि अभियान भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन डेंगू का डर अब भी बना हुआ है। इसलिए सतर्कता बरतना जरूरी है।
मुद्दा चाहे किसी बीमारी का हो या समस्या का, जन भागीदारी बहुत बड़ी ताकत होती है। अगर जनता का साथ मिल जाए तो बड़ी से बड़ी समस्या का इलाज भी निकल आता है। 2015 में आए 15,867 डेंगू के मामलों को इस साल सफलतापूर्वक 489 तक लाने में कामयाबी हासिल की गई। 2015 में डेंगू से हुईं 60 मौत की तुलना में इस साल एक भी मौत नहीं हुई। 2019 में सिर्फ 2,036 मामले आए और दो मौत हुईं।
अगले साल मरीजों की संख्या भी और कम हो जाने की उम्मीद लग रही है। जरूरत अब केवल सतर्कता बरतने की है। कहीं ऐसा न हो कि अभियान तो खत्म हो गया, अब फिर से लापरवाही शुरू हो जाए। जरा सी लापरवाही होते ही हालात फिर बिगड़ सकते हैं। इसके लिए आम जनता को ही नहीं, विशेषज्ञों को भी ध्यान रखना होगा। हमें इसे दीनचर्या में शामिल कर लेना चाहिए कि आसपास पानी जमा न होने दें। डेंगू के खिलाफ दिल्ली सरकार के अभियान की सफलता से साबित होता है कि जन भागीदारी में बड़ी ताकत है।